Ticker

6/recent/ticker-posts

DSP के घर खुद चलकर पहुंचे लड्डू गोपाल, बेटी ने सेवा से जो मांगा वो पाया



वृंदावन की भूमि, संतो की भूमि कही जाती है। रसिकों की भूमि कही जाती है। बड़े बड़े संतो और रसिकों की वाणी है कि अगर कोई वृंदावन आ जाता है तो बस यहीं  का होकर रह जाता है। उसके जीवन में कृष्ण कन्हैया और राधा रानी से प्यार करने के अलावा और कुछ शेष रह ही नहीं जाता। वृंदावन के संतो, रसिक जनों की जीव्हा पर बस एक नाम की रट रहती है और वो है प्रेम स्वरूपा श्री राधा रानी की। देश में किसी की भी सरकार हो वृंदावन के संतो और प्रेमियों को उससे तनिक भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनकी हमेशा से एक ही सरकार रही है और वो है राधा रानी सरकार. बिना राधारानी की कृपा के कोई भी व्यक्ति वृंदावन में प्रवेश नहीं पा सकता है। 

..... अरे रूकिए, ऐसा मैं नहीं कह रही हूं, यानि बोल तो मेरे है लेकिन ये शब्द मेरे नहीं है, वृंदावन के रहने वाले लोगों और सिद्ध संतो, रसिको की ऐसी वाणी है। औऱ एक बात ये भी है कि जो भी इन रसिकों की वाणी पर विश्वास कर लेता है उसके विश्वास को मजबूत बनाने का काम खुद राधा रानी और श्री कृष्ण करते है।

ऐसे ही आज एक अटूट रिश्ते, और श्री कृष्ण पर अटूट विश्वास की कहानी हम आपको सुनाएंगे, जो एक बार वृंदावन आने के बाद बस वहीं की होकर रह गई। 

ये बात है श्री कृष्ण के प्रेम मे ंडूबी शिप्रा की और उनके बर्फी की। आपको बर्फी नाम सुनकर थोड़ी हैरानी हुई, लेकिन ये आपको कहानी में आगे पता लग जायेगा कि आखिर बर्फी कौन है.... तो शिप्रा पंजाब के अमृतसर की रहने वाली है. उनके पिता पुलिस में डीएसपी पद पर है। शिप्रा को बचपन से ही श्री कृष्ण बड़े प्यारे औऱ सलोनो से लगते थे। वो अपने घर के पास बने प्रसिद्ध मंदिर, दुर्गियाना मंदिर जाया करती थी। और मंदिर में जाकर शिप्रा भगवान के भजन गाती थी।  शिप्रा की नानी अक्सर वृंदावन बिहारी जी के दर्शन के लिए जाया करती थी। शिप्रा ने कई बार अपनी नानी से उनको भी वृंदावन ले जाने के लिए कहा लेकिन नानी वृंदावन की भीड़ के कारण छोटी सी बच्ची को ले जाने मे ंडरती थी। उनका कहना था कि छोटी सी बच्ची, वृंदावन की भीड़ में कहीं गुम हो गई तो मै कहां ढूढूंगी। लेकिन शिप्रा को तो वृंदावन जाने की लगन लगी थी। लेकिन जब कोई ले जाने वाला नहीं मिलता वो भी अपना मन मान कर बैठ गई औऱ श्री कृष्ण से प्रार्थना करने लगी कि कभी मुझको भी अपने वृंदावन धाम के दर्शन करा दो। शिप्रा का इतना कहना था कि शिप्रा के पिता जी का किसी कानूनी काम के चलते दिल्ली आना हुआ। शिप्रा भी अपने परिवार के साथ दिल्ली पहुंची। दिल्ली पहुंचकर पता चला कि जिस काम के लिए शिप्रा के पिता दिल्ली आए थे वो किसी कारण से 2 दिन के लिए पोस्टपोन हो गया। फिर क्या था शिप्रा को तो वृंदावन जाकर बिहारी जी के दर्शन करने का मानो जैसे मौका मिल गया। शिप्रा ने अपनी चाची को वृंदावन चलने के लिए जैसे तैसे मना लिया। और अगले दिन तैयार होकर  शिप्रा पहुंच गई वृंदावन। शिप्रा ने वृंदावन पहुंचकर जैसे ही गाड़ी से नीचे पैर रखा उनके रोगटे खड़े हो गए। ऐसा लगा कि जैसे इस धरती में न जाने कितनी बार वो आ चुकी है। शिप्रा को वृंदावन के परिवेश से एक अलग सा जुड़ाव महसूस होने लगा। और उसकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे। जैसे तैसे शिप्रा ने खुद को संभाला और चल पड़ी वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के दर्शन के लिए। जैसे जैसे रास्ते में शिप्रा मंदिर की ओर आगे बढ़ रही थी, उसके हृदय में कंपन्न बढ़ता जा रहा था। मानो वो किसी अपने किसी परिवार के बिछड़े सदस्य से कई सालों बाद मिलने जा रही हो। आखिरकार शिप्रा के जीवन में उनके बर्फी की वजह से वो पल भी आया जब उन्होंने बांके बिहारी के दर्शन किए। बिहारी जी के दर्शन करने पर शिप्रा को ऐसा लगा कि उसका सालों से बिछड़ा कोई अपना मिल गया हो। दर्शन के बाद शिप्रा शाम के समय वापस लौट कर दिल्ली आ गई। और फिर पिता का काम खत्म होने के बाद अपने परिवार के साथ शिप्रा पंजाब अपने घर वापस लौट गई। शिप्रा बचपन से ही दुर्गियाना मंदिर श्री कृष्ण के दर्शन के लिए जाया करती थी, तो जब शिप्रा वृंदावन से घर लौटने के बाद फिर से मंदिर दर्शन करने गई तो उसने ठाकुर जी को अपने घर आने साथ चलने के लिए मन ही मन कहा। कहते है न अगर आप सच्चे मन से भगवान से कुछ मांगों तो जरूर पूरा होता है तो शिप्रा के मन की बात ठाकुर कैसे न सुनते। 

शाम के समय मंदिर के पुजारी अपने किसी काम के चलते शिप्रा के पापा के पास गए और उपहार में देने के लिए भेंट स्वरूप उन्होंने मंदिर में विराजे एक लड्डू गोपाल ले लिए। जब शिप्रा घर पहुंची तो वो अपनी आंखों पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि मंदिर में विराजे लड्डू गोपाल के विग्रहों में जो उसे सबसे प्यारे लगते थे वही विग्रह पुजारी जी उसके घर में ले कर आए थे। अब तो शिप्रा सुबह शाम ठाकुर जी की सेवा अपने बच्चे की तरह करने लगी। शिप्रा का भगवान के प्रति लगाव को जब उसके परिवार वालों ने देखा तो उससे ठाकुर जी का नामकरण करने को कहा, जब से नामकरण की बात आई तो शिप्रा के मन में एक ही नाम बार बार गूंजने लगा और वो नाम था- बर्फी। तब से  शिप्रा के बाल ठाकुर का नाम पड़ गया बर्फी। अब शिप्रा कहीं भी जाती है तो बर्फी को हमेशा अपने साथ ही लेकर जाती है। कई लोगों ने शिप्रा को कई तरह से समझाया कि ठाकुर जी को हर जगह लेकर नहीं जाना चाहिए, उनको ऐसे नहीं रखना चाहिए, इस पर शिप्रा कहा करती हैं कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरी जो भावनाएं मेरे बच्चे बर्फी के लिए है वो दूसरा कोई नहीं जानता है। शिप्रा ने बर्फी को हमेशा अपने रखने के पीछे का एक रोचक किस्सा सुनाया। 

शिप्रा कहती है कि एक बार जब हम परिवार के साथ दिल्ली किसी काम के लिए चले गए थे क्यूंकि ये तय था कि हम सब शाम के वक्त घर वापस आ जाएगें, इसलिए पूजा घर में बर्फी की जरूरत का सारा सामान रखकर हम सब दिल्ली के लिए निकल दिए। लेकिन जब हम लोग वहां पहुचें तो काम के पूरा होते होते देर शाम हो गई। और फिर तेज बारिश भी होने लगी। परिवार के लोगों ने फैसला किया कि आज रात यहीं रूकना सहीं होगा। बारिश के चलते एक्सीडेंट होने का डर भी था। इसलिए हम सब रात को दिल्ली में ही रूक गए। और जब दूसरे दिन घर पहुचे तो देखा कि पूजा घर में सारा सामान बिखरा पड़ा है, बर्फी के लिए रखा पानी फैला पड़ा है। जो भोग लगाया था वो दूसरे कोने में जमीन पर पड़ा था। पूरा पूजा घर अस्त व्यस्त था। ये देखने के बाद लगा कि बर्फी को अकेला छोड़ा था इसलिए वे गुस्सा हो गए और पूरा सामान अस्त व्यस्त कर दिया। तब से वो दिन और आज का दिन मैं बर्फी को कहीं भी नहीं छोड़ती। हमेशा अपने साथ ही रखती हूं। और ऐसा लगता है कि बर्फी भी मेरे साथ रहना चाहते है। वो भी किसी न किसी बहाने से मेरे पास रूक जाता है।  

बता दें कि शिप्रा एक ब्लॉगर है, जो अपने डेली रूटीन और अपने बर्फी की सेवा से जुड़े विडियोज बनाती है। अगर आप भी उनके बर्फी से मिलना चाहते है तो आप @shiprabawa पर जाकर दर्शन कर सकते है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ