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रामकथा सागर: नारी सम्मान के लिए संकल्पबद्ध राम



कानपुर। भारतीय समाज में नारी को देवी माना जाता है। नारी सम्मान को बल देते हुए कहा जाता है- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता। यानि जहां नारी का सम्मान किया जाता है उस स्थान पर देवता निवास करते है। प्रभु श्री राम ने नारी को सम्मान दिलाने के लिए अपने आचरण से कई उदाहरण प्रस्तुत किए। 


श्रीराम के वनगमन में नारियों से सामना हुआ, किसी को शाप से मुक्ति दिलाई, तो किसी को सशक्त बनाया।श्री राम ने ऋषि गौतम की पत्नी माता अहिल्या को शाप मुक्त कर उनका उद्धार किया। जन्म से यक्षिणी ताड़का का विवाह राक्षसकुल में हुआ तो ऋषियों के यज्ञ में बाधा उसकी आदत बन गई थी। अगस्त्य मुनि के शाप से उसका रूप कूरूप हो  गया। ऋषि विश्वामित्र के निर्देश पर श्री राम ने ताड़का का वध कर उसका उद्धार किया।माता शबरी के आश्रम में उनके मुख से चखे बेर खाकर प्रभु ने उनका भी उद्धार किया। श्री राम ने जब बाली का वध किया तो पति वियोग में व्याकुल उसकी पत्नी तारा को जीवन सार समझाया।....

कैकेयी के वरदान की लाज रखी। उनके सम्मान में कमी नहीं आने दी। वन भेजने वाली कैकेयी से श्रीराम कहते हैं...

सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुरागी॥
तनय मातु पितु तोषनिहारा। दुर्लभ जननि सकल संसारा॥

यानी हे माता! वही पुत्र बड़भागी है, जो पिता-माता के वचनों का अनुरागी है। आज्ञा पालन करके माता-पिता को संतुष्ट करने वाला पुत्र संसार में दुर्लभ है। उस कालखंंड के राजा एक से अधिक विवाह करते थे लेकिन श्री राम ने जानकी जी को एक पत्नीव्रत का वचन देकर किसी दूसरी स्त्री को सीता के समकक्ष स्थान नहीं देने का व्रत लिया।

बाली के बाद उनका सम्मान बनाए रखा। श्री राम के कहने पर सुग्रीव किष्किन्धा के राजा बने तो रानी तारा को राजमहल में जीवनपर्यन्त सम्मान मिला। रावण वध के बाद युद्धभूमि में पहुंची महारानी मंदोदरी  काफी दुखी हुई। विभीषण को लंका का राजा घोषित करने के बाद श्री राम ने उन्हें महारानी की जीवनपर्यंत मर्यादा और सम्मान करने का वचन लिया। जिससे वे लंका में सम्मान की अधिकारी रहीं। रामराज्य में लोकमर्यादा के लिए माता जानकी के वनगमन के निर्णय को भी उन्होंने स्वीकार किया, फिर उसका अर्थ भले राजा रानी के पारिवारिक जीवन का त्याग ही क्यों न हो। इसीलिए राम सबके हैं, राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।





 






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