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जया किशोरी ने क्यूं कहा कि बेटी चांद पर तो जाए लेकिन 2 चाय और 4 पराठे बनाकर


कानपुर। जया किशोरी आज के समय में फेमस कथावाचक के साथ साथ बेस्ट मोटिवेशनल स्पीकरों में से भी एक है। उनके द्वारा समाज में फैली नकारात्मक सोच को  सुधारने के लिए जो विचार बताए जाते है, वे लोगों के मन और बुद्धि को झकझोर देते है, और उनको सोचने पर मजबूर कर देते है। जया किशोरी उन गिने चुने लोगों में से एक है जो समाज की सच्चाई को तो कहने की हिम्मत तो रखते ही है साथ ही ये भी बताते है कि आप कैसे समाज में सुधार ला सकते है।औऱ खुद भी उसकी नजीर पेश करती है। आज देश के युवाओं को सीख तो सब देते है लेकिन उनकी सोच को समझते कितने ही लोग है... युवा इस भीड़ भाड़ की जिंदगी में किस तरह से जूझ रहा है और उसको अपनी मंजिल मिलेगी भी या नहीं, उसकी लवलाइफ में हजारों मुश्किलें चल रही है, उनको कैसे सही करें आदि जैसी कई समस्याएं है जिनके लिए युवाओं को कोई सही राय नहीं दे पाता। अगर कोई देता भी है तो वो है सिर्फ और सिर्फ आरोप। इसलिए युवाओं के बीच मोटिवेशनल स्पीकर जया किशोरी की लोकप्रियता बढ़ने का एक कारण यह भी है कि वे युवाओं को भगवान से भी जोड़ती है तो उनको अपनी लव लाइफ कैसे बैलेंस करनी है, इस बारे में भी खुल कर उनसे बात करती है। जो युवाओं को उनके जीवन को आसान बनाने में मदद करते है। और यही वजह भी है कि आज के समय में हर कोई जया किशोरी की राय समाज से जुड़े मुद्दों में जानना चाहता है।  

जया किशोरी अपनी राय देने के साथ समाज में फैली बेवजह की कुरीतियों को एक तरह का आईना दिखाने का भी काम करती है। चूंकि वे खुद एक युवा है  तो उनका मानना है कि आज भी समाज में कई ऐसी बातें है जो बदलने की जरूरत है। क्यूंकि ये समाज कहीं और से नहीं बनता। इस समाज को अच्छा बनाने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा आज के युवा की ही है। और जब युवा ही समाज में फैली बुराइयों को खत्म नहीं करेगा तो ये आगे चलकर हमारी ही जिंदगी और आने वाले पीढ़ियों को प्रभावित करेगी। जो भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने में बाधित होगा। ये हमारा समाज ही होता है जो भटके हुए को रास्ता दिखाता है। और उसमें भी सबसे जरूरी है वो जिससे ये समाज बनता है यानि परिवारों से। परिवार जहां अगर सही सोच के साथ परवरिश की जाएं तो समाज के लिए नजीर बन जाएं वहीं अगर कोई परिवार के बच्चे बिगड़ जाए तो वे समाज के लिए नासूर बन जाए। इसलिए जया किशोरी अक्सर ही पैरेंटिंग को लेकर भी उपयोगी टिप्स दिया करती है।  


जया किशोरी बेटियों के लिए सबसे ज्यादा अपने शब्दों में मुखरता लाती है। वे कहती है कि वैसे तो हमारा समाज बदल रहा है, और सब चाहते है कि बेटा हो या बेटी खूब तरक्की करें। दोनों ही चांद तक जाएं. बस अगर बेटी जब चांद पर जाए तो वो 4 पराठें और 2 कप चाय बनाकर जाएं। आज भी हम ऐसी मानसिकता में जी रहे है कि काम की जिम्मेदारी सिर्फ बेटियों के कंधों पर ही क्यूं डाली जाती है। वे कहती है कि मैं ये नहीं कह रही कि बेटे काम नहीं करते लेकिन यहां समझने वाली बात है कि जब बेटा काम से थक हार कर घर जाता है तो घर के सदस्य अन्य कामों को छोड़कर सबसे पहले बेटे को चाय नाश्ता आदि जरूरत का सामान पूछते है वहीं जब बेटी अगर ऑफिस से घर जाती है तो आप उससे ये आशा करते है कि वो आए तो आराम तो करें लेकिन बाद में घर के काम भी करें। आखिर थकावट तो दोनो को ही उतनी ही होती है। फिर बेटियों से ये एक्स्ट्रा उम्मीद क्यूं की जाती है। आखिर वे भी इंसान ही है।


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