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जो करते है संतो का अपमान, उनके लिए प्रेमानंद महाराज ने दी ये सलाह


 

कलियुग में जन्म लेने वाला हर प्राणी किसी न किसी रूप में पाप-पुण्य कर्म करता रहता है। और जिसका परिणाम उसको अच्छे और बुरे रूप में मिलता ही है। यानि अच्छे कर्मों का अच्छा फल, और बुरे कर्मों का बुरा फल। लेकिन धर्म ग्रंथों में कुछ पाप कर्म ऐसे होते है जिनका फल ऐसा मिलता है जो मनुष्य के करोड़ो करोड़ो पुण्य कर्मों को नष्ट कर देता है। और सिर्फ इतना ही नहीं जिस क्षण आपसे ये पाप हो जाता है, उसके बाद से आपको अंतर्आत्मा में जलन, पीड़ा, मन का स्थिर न रहना, उलझन होना जैसी समस्या भी होने लगती है। जिससे व्यक्ति का क्रोध औऱ बढ़ जाता है। फिर क्रोध में आकर व्यक्ति और भी गलतियां करता है, औऱ ये गलतियां उस व्यक्ति के लिए नर्क के द्वार खोल देती है। 

वर्तमान समय में अगर किसी व्यक्ति को धर्म से जुड़ा कोई प्रश्न पूछना होता है तो उसके मन में सिर्फ एक नाम ही आता है जिसपर वह आंख बंद कर विश्वास कर सकता है औऱ अपने प्रश्न के लिए एक शास्त्र सम्मत उत्तर पा सकता है। और वो नाम है प्रेमानंद महाराज का। क्यूंकि उनकी बातों को सुनकर लोगों को लगता है कि उन पर जिस तरह की कृपा राधा रानी ने की है, तो वे ही सिर्फ ऐसे संत है जिनके पास सें उनको भगवान वाला ज्ञान मिल सकता है। हालांकि ये बात किसी को भी अपनी बुद्धि में नहीं लाना चाहिए कि और कोई वास्तविक संत नहीं है, क्योंकि संतो की ही वाणी इस बात का प्रमाण देते हुए ये कहती है कि इस धराधाम में अनेक संत रहते है, कुछ प्रकट रूप से लोगों के बीच आते है तो कोई शांत भाव से रहते है। तो आज हम आपको एक ऐसे ही जिज्ञासु मन से पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर के बारे में बताने वाले है जिसे एकांतिक वार्ता में एक शख्स नें प्रेमानंद महाराज से पूछा और महाराज जी ने उसका जो उत्तर दिया है, वो उत्तर सभी को जानना चाहिए....


एकांतिक वार्ता के दौरान एक शख्स ने प्रश्न किया कि वैसे तो हम हमेशा ही पाप करते है और आप कहते है कि भगवान हमारे सारे पापों को माफ कर देता है,लेकिन क्या ऐसा भी कोई पाप है जिसे भगवान माफ न करता हों इसका जवाब देते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा कि हां बच्चा एक ऐसा भी पाप है जिसका न तो कोई प्रायश्चित है और न ही नर्क में जगह। और वो पाप है जब कोई भगवान के भक्त के विषय में गलत सोचता और बोलता है। अरें अगर किसी ने भगवान के भक्त के बारे में गलत सोचा ही भर है तो इसका परिणाम ये होता है कि आपके करोड़ो करोड़ो जन्मों के पुण्य कर्म नष्ट हो जाएंगे और आगे भी भगवत चिंतन में बाधा आएगी। मन जलेगा, आत्मा में पीड़ा होगी, औऱ मन व्याकुल हो उठेगा। और तो और उसके बाद से ही भागवत बातों में भी समस्या उत्पन्न होने लगेगी। फिर इस लोक में तो छोड़िए परलोक में भी आपको जगह नहीं मिलेगी। हां इस गलती का उपाय एक है जो भगवान ने स्वयं बताया कि मेरे भक्त के लिए जो भी गलत विचार रखता है उस पाप को मैं भी नहीं माफ कर सकता हूं, लेकिन अगर  किसी साधक से भूल वश ऐसी गलती हो गई है तो उसको मेरे भक्त के पास जाकर माफी मांगनी होती है। अगर मेरा भक्त माफ कर देता है तो मैं भी माफ कर दूंगा। और भगवान के भक्त के बारे में बताते हुए प्रेमानंद महाराज कहते है कि जब कोई महापाप करने के बाद भागवत भक्त से सच्चे मन के साथ माफी मांगने जाता है तो भक्त उस साधक को तुरंत माफ कर देता है। क्योंकि संत तो जीव का केवल कल्याण ही चाहते है।और संतो का स्वभाव बहुत कोमल होता है। इसलिए तो कहा जाता है भगवान से प्यारे भगवान के भक्त होते है।



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