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ब्रजमंडल जहां से शुरू हुई होली वहां आज भी चमत्कारी रूप से रंग बदलता है पानी


होली का त्योहार ऐसा त्योहार है जहां हर व्यक्ति रंग में सराबोर नजर आता है। होली का त्योहार हर धर्म,मजहब, पंथ के लोग मिल जुलकर मनाते है। साथ ही पूरी दुनिया में भी ब्रज की होली बहुत फेमस है। यहां पर न सिर्फ हिंदुस्तान के बल्कि विदेशों से भी कई श्रृद्धालु होली के मौके पर आते हैं और रंगों का त्यौहार का आनंद लेते हैं.ब्रज क्षेत्र की होली सिर्फ त्यौहार नहीं बल्कि प्रेम का भी प्रतीक है जो की राधा कृष्ण की लीलाओं से शुरू हुआ है. ब्रज में बसंत पंचमी से होली का पर्व शुरू हो जाता है जो की 40 दिनों तक मनाया जाता है.बात करें होली की तो जितनी तरह से ब्रज में मनाई जाती है, उतने प्रकार से विश्‍व में कहीं नहीं मनाई जाती. यहां रंगों की होली, गुलाल की होली, लठ्ठमार होली, लड्डू होली, फूलों की होली, हुरंगा ,होलिका दहन ,कीचड़ की होली, धुलेंडी पर दही और हल्‍दी की होली, मंदिरों में फाग और समाज गायन, फालैन में होली से पंडा का गुजरना सहित दर्जनभर तरीकों से होली मनाई जाती है. 

लेकिन अगर मुख्य होली की बात करें तो खासतौर से ब्रज में वृंदावन, बरसाना, नंदगांव, दाऊजी की होली देखने देश विदेश से लोग आते है। लेकिन क्या आपको पता है कि जिस त्योहार को पूरा विश्व मनाता है आखिर उसकी शुरूआत कैसे हुई, और किसने इसकी शुरूआत की. तो आज हम आपको इन सवालों के जवाब तो देंगे ही साथ ही ये भी बताएंगे कि राधाृ-कृष्ण के होली खेलने का प्रमाण वहां पर बना कुंड कैसे देता है। 

बता दें कि जब कहीं भी होली का त्योहार होती है तो राधा-कृष्ण की होली का जिक्र जरूर ही होता है। और अगर बात करें ब्रज की होली तो उसका कहीं कोई सानी नहीं है। और इस विश्व प्रसिद्ध होली की शुरूआत हुई थी ब्रज के एक गठौली गांव से। जब एक बार राधा-कृष्ण गोवर्धन के पास आए तो ठाकुर जी ने राधा रानी के चेहरे पर खेल खेल में लाल गुलाल लगा दिया। इस पर राधा रानी की अन्तरंग सखियो में से एक ललिता सखी ने श्री कृष्ण को छेड़ते हुए उनके पूरे चेहरे पर गुलाल रगड़ दिया। फिर क्या था अपने कृष्ण कन्हैया को इस रूप में  देखकर कन्हैया के साथ गए उनके सखाओं ने सभी सखियों को रंगने की ठान ली। और वहीं दूसरी ओर राधा रानी के साथ आई उनकी सखियों ने भी सभी सखाओं को रंग लगाने की बात कही। 

और देखते ही देखते एक दूसरे को रंग लगाने की होड़ ऐसी चली कि गोवर्धन क्षेत्र का पूरा आसमां गुलाल के रंग से भर गया। औऱ यह पहली बार ही था जब ब्रज के क्षेत्र में पहली बार रंगों का खेल खेला गया था। और उसके बाद राधा रानी और कन्हैया के साथ सखियों और सखाओं को होली का रंग ऐसा चढ़ा कि उन्होंने एक दो दिन नहीं बल्कि पूरे 40 दिन तक इस तरह रंगों का खेल खेला। होली सबसे पहले यहां ही खेली गई थी इस बात का प्रमाण गठौली गांव के पत्थर भी देते है। और इस रंगों के खेल में एक और घटना घटी थी जिस वजह से इस स्थान का नाम ही गठौली पड़ गया था। दरअसल जब पहली बार श्री कृष्ण ने राधा राानी को रंग लगाया था तो उसी समय एक सखी ने चुपके से राधा रानी की चुनरी औऱ कन्हैया के पटुके को लेकर उसमें गांठ लगा दी थी जिसके बाद गांठ बांधने की वजह से ही इस जगह का नाम ही गठौली पड़ गया। और अगर बात करें पहली होली के प्रमाण की तो आज भी अगर आप गठौली गांव के पत्थरों को पानी के साथ रगड़ेगे तो उनसे लाल रंग का गुलाल सरीखा निकलता है जो होली की इस बात को बल देता है। इसके अलावा गठौली गांव में एक तालाब ऐसा है जो लोगों को आश्चर्य में डाल देता है। क्योंकि जैसे ही होली का त्योहार आता है, इस कुंड का पानी अपने आप ही गुलाबी रंग का दिखने लगता है। इस वजह से कुंड का नाम भी गुलाल कुंड पड़ गया जो आज भी राधाृ-कृष्ण के अमर प्रेम का प्रतीक बना है। और होली की शुरूआत की सच्चाई को भी बयां करता है। इसके अलावा इस कुंड से जुड़ी एक बात यह है कि इस कुंड के पास बारह महीने ही होली खेलने की प्रथा है। 


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