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द ग्रेट खली ने पूछा कि आखिर मंदिर क्यूं जाना चाहिएं, प्रेमानंद महाराज का जवाब सुन....





कानपुर। राधा रानी के परम उपासक और वृंदावन की पावन धरा पर निवास करने वाले प्रेमानंद महाराज आज के समय में अध्यात्मिक मार्ग में चलने वालों लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत है। अगर किसी भी भक्त के मन में अपनी साधना से जुड़ा या भक्ति मार्ग से जुड़ा कोई सवाल उठता है तो उसके पास सिर्फ एक ही रास्ता होता है और वो होता है प्रेमानंद महाराज। औऱ महाराज जी भी किसी भी भक्त के प्रश्नों का जवाब इतने सरल शब्दों में देते है कि उसको एक छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक समझ सकते है और उस आधार पर भगवान की भक्तिमार्ग में आगे बढ़ सकते है। बता दें कि प्रेमानंद महाराज उन संतों में से एक है जिनके पास देश के नामचीन लोगों के साथ हर कोई भगवत अनुरागी जन आकर उनसे मिल सकता है और सवाल पूछ सकता है। बड़े बड़े वीवीआईपी लोगों का महाराज जी के आश्रम में आए दिन आना जाना लगा ही रहता है। लेकिन इसके बाद भी प्रेमानंद महाराज के आश्रम में किसी के लिए अलग से वीवीआईपी ट्रीटमेंट नहीं रखा जाता है। उनके आश्रम में हर खास व्यक्ति आम जन की तरह  ही आता है। और अपने आध्यात्मिक मार्ग के प्रश्नों के उत्तर पाता है। आज हम आपको ऐसे ही एक वीआईपी जो महाराज जी के प्रशंसक है ,के बारे में  बताएंगे जो एक आम व्यक्ति की तरह ही प्रेमानंद महाराज जी के पास जिज्ञासु मन के साथ गया और अपने प्रश्न के उत्तर पाया।

हिंदू धर्म में भगवान को लेकर कई मिथक लोगों के मनों में अक्सर ही उठते रहते है जिनमें कुछ सवाल ऐसे है कि हमको भगवान की भक्ति क्यूं करना चाहिए, अगर भगवान है तो हमको दिखते क्यूं नहीं है, और सबसे बड़ा प्रश्न यह कि जब भगवान हमारे अंदर ही है तो हम लोगों को मंदिर क्यूं जाना चाहिए, .... ये कुछ सवाल ऐसे है कि जो हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के मन में अक्सर उठते ही रहते है। जिसका जवाब पाने के लिए खुद WWE रेसलर द ग्रेट खली प्रेमानंद महाराज के पास पहुंचे और अपने सवाल महाराज जी के समक्ष रखे, इन सभी सवालों को प्रेमानंद महाराज ने ध्यान से सुना और सभी के उत्तर दिए। जिसके बारे में आज हम आपको अपनी इस वीडियो में बताएंगे...
प्रेमानंद महाराज ने उत्तर देते हुए कहा कि जैसे कि आपके शरीर में पहले से ही सारी विद्या विद्धमान है फिर भी आपको ककारा पढ़ने मास्टर जी के पास तो जाना पड़ा। ऐसे ही हमारे भीतर ईश्वर का वास होने के बाद भी हमको गुरू के पास जाना होता है। जैसे हम सबको पता है कि दूध में घी होता है तो दूध से पूड़िया तल के दिखाओं। तल सकते हो क्या...नही ना....क्यूं...क्यूंकि उसकी एक प्रक्रिया होती है। पहले दूध से दही बनेगा फिर उसको मथा जाएगा और उससे फिर मक्खन निकलेगा फिर जब बाद में उसको गर्म किया जाएगा तब कहीं जाकर उससे घी निकलता है। इसी तरह भगवान हमारे अंदर बैठा है लेकिन उसको समझने के लिए हमें गुरू की आवश्यकता होती है। और जहां तक बात है मंदिर जाने की तो भगवान तो सब जगह पर ही, लेकिन मंदिर में लोगों का विश्वास ज्यादा दृढ़ होता है कि भगवान मंदिर में रहते है, इसलिए मंदिर में जाने की बात कही जाती है। लेकिन अगर आप ये अभ्यास कर लें कि भगवान कण कण में रहते है तो आपको मंदिर जाने की भी कोई जरूरत नहीं है। और रही बात भक्ति करने की हम उस अविनाशी के अंश है, हमारे सारे नाते उसी से है। वो हमारा परम पिता है। और बच्चा अपने पिता के पास नहीं जाएगा तो किसके पास जाएगा। इसलिए हम सबको अपने पिता के पास पहुंचने के लिए उसकी भक्ति करनी चाहिए। और जब वो भगवान हमको मिल जाएगा फिर हमको कुछ करने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। फिर आपके सारे काम आपका पिता ही करेगा। 

























 

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