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3 बार का सस्पेंड दरोगा पहुंचा प्रेमानंद जी के पास, बातें सुन महाराज जी ने.....


कानपुर। प्रेमानंद महाराज के पास अक्सर लोग दीन दुनिया में रहकर किस तरह भक्ति करें, इस बारे में प्रश्नों के उत्तर और मार्गदर्शन लेने पहुंचते है। जिसपर महाराज जी सभी को सत्य के साथ धर्म परायण होकर अपने अपने कर्मों को करने का उपदेश देते है। जिसपर चलकर आज के समय में कई लोग अपने मन को शुद्ध कर रहे है। भगवान की ओर बढ़ रहे है। लेकिन एक ऐसा व्यक्ति प्रेमानंद महाराज के पास पहुंचा जिसकी व्यथा सुनकर महाराज जी ने उस व्यक्ति को दे डाली धर्म में चलकर परम सुखी होने की निराली सीख.....


जब महाराज जी सुबह के समय आश्रम में आए लोगों के प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे कि तभी एक दरोगा ने प्रेमानंद महाराज से रोते हुए अपना दुख बताया। दरोगा बोले कि गुरू जी मैं सत्य के साथ रहने वाला व्यक्ति हूं, मै धर्म को सर्वोपरि मानता हूं, और इसीतरह अपना जीवन व्यतीत करना चाहता हूं, लेकिन मै जिस नौकरी में हूं, वहां पर बिना किसी लेने देन के कोई काम नहीं बनता है। मेरे से ऊपर वाले अधिकारी मुझसे घूंस लेने के कहते रहते है लेकिन जब मैं मना करता हूं तो वो किसी ऐसी जगह ऐसे समय मेरी पोस्टिंग कर देते है जहां मेरा रहना दूभर हो जाता है। मैं भगवान का भजन करता हूं, औऱ मैं अपने जीवन में सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहता। यहीं कारण भी है कि जब से मैने ये नौकरी जब से की है तब से अब तक मेरे आलाधिकारी मुझे 3 बार सस्पेंड कर चुके है। अब बताइए कि मै क्या करू, कैसे धर्म परायण होकर जनता की सेवा करूं,
जब दरोगा की तरफ से इस तरह का प्रश्न महाराज जी ने सुना है तो उन्होंने कहा कि सबसे पहले मैं आपकी सेवा और श्रृद्धा को प्रणाम करता हूं। उत्तर देते हुए महाराज जी ने कहा कि हम समझ सकते है कि जब दुनिया में धर्म परायण होकर लोग चलना चाहते है तो कई तामसी प्रवृत्ति के लोग आकर उनके मार्ग में बाधा बनते है। तब उस समय हमको भगवान के विषय और उनके कानून को समझना चाहिए और सदा उसका ध्यान करना चाहिए, जिससे हमारा विवेक जाग्रत करना होगा औऱ हम सही निर्णय ले सकेंगे। 

प्रेमानंद महाराज आगे समझाते हुए कहा कि देखिए आपकी जो सात्विक प्रवृत्ति है जिससे धर्म की ओर आपका झुकाव है और आप भगवान की ओर चलना चाहते है तो सबसे पहले ये भगवान की आपके ऊपर की हुई सबसे बड़ी कृपा है। क्योंकि ये सात्विक प्रवृत्ति हर किसी मनुष्य की नहीं होती। हम खुद यहां बैठकर दिन रात लोगों को धर्म परायण होकर चलने की बात सिखाते है और सभी से प्रार्थना करते है कि हर कोई धर्म को आधार बनाकर ही अपना जीवन जियें, सुनते तो सब है लेकिन मानते कितने लोग है। जब उनको दुनिया में उनके मतलब का सुख मिलता है तो उस ओर खिचें चले जाते है। और आपकी तो ये प्रवृत्ति स्वत: ही है जो बहुत ही वन्दनीय बात है। अब बात आती है कि आप जिस परिवेश में नौकरी करते है वहां पर कोई धर्म परायण नहीं है। तो आपको भगवान का ये कानून समझने की जरूरत है कि ये सब हमारे ही खराब कर्मों का फल है कि हमको ऐसी जगह काम मिला है। और धर्म से नहीं चलने दिया जाता। हमारे साथ जो भी अच्छा बुरा होता है वो किसी और की वजह से नहीं हमारे ही पूर्व जन्मों के कर्मों का फल होता है। जैसे ही आपका बुरे कर्म भोगने का समय खत्म हो जाएगा, भगवान आपको कहीं ऐसी जगह लगा देंगे कि आपकी उनपर निष्ठा और भी बढ़ जाएगी।
 

अब आपको जो परिवेश मिला है इसपर आप सिर्फ राधा रानी की शरण में रहकर नामजप करों और जो भी काम करों, धर्म परायण होकर करों, और अपना किया हुआ हर कर्म भगवान के चरणों में समर्पित कर दों, और राधे-कृष्ण भगवान से यहीं प्रार्थना करो कि हे प्रभु आप तो सब जानते ही है, मै तो धर्म पर चलकर आगे बढ़ना चाहता हूं, अब आपने ही मुझे ऐसे परिवेश में डाला है तो अब आप ही संभालों. मुझमें जितना सामर्थ्य है मै तो उतना ही कर सकता हूं, पर आप तो अनंतकोटि शक्तियों से संंपन्न हो, अब आप ही मुझे संभाल लो। और अगर आपके अधिकारी आपको किसी कठिन जगहों पर भेज देते है जहां दुर्गम परिस्थितयां है तो बस आप वहां पर राधा नाम जप करिए और अपने सारे कर्मों को भगवान के चरणों में समर्पित कर दीजिए। और उनसे प्रार्थना करें कि अब मेरी जिम्मेदारियों को आप संभालो।  धर्म से चलने वाला व्यक्ति अगर इस बात का विश्वास कर लें कि जो भी धर्म की राह पर चलता है उसके ये लोक और परलोक दोनो लोक सुधर जाते है। अधर्म करने वालों को शुरूआत में सुख दिख जरूर सकता है लेकिन बाद में उन्हें गलत कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा। 


बता दें कि देश में पुलिस सिस्टम के ऊपर पहले भी सवांलिया निशान खड़े होते रहे है। कई पुलिस वाले इस नौकरी में आते तो सेवा करने के उद्देश्य से है लेकिन बाद में नेताओं और अधिकारियों के दबाव वो और उनका परिवार झेल नहीं पाता है. फिर उनके सामने नौकरी करने के लिए सिर्फ दो ही रास्ते बचते है या तो वे अपने धर्म की राह को छोड़ दे और अधर्म के मार्ग को अपनाकर गलत काम करने लगे, या अपने आलाधिकारियों के अनुचित आदेशों को न मानकर नौकरी से त्याग पत्र दे दें। 

















  

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