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रूसी महिला को भा गया वाराणसी, काशी में रहने के लिए किया ये काम




कानपुर। सनातन धर्म को यूं ही सभी पंथों की जननी नहीं कहा जाता, जो भी इसको एक बार अच्छे से जान लेता है फिर वो की  बस इसी का होकर रह जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ रूसी महिला इंगाबारादोश के साथ। 2011 में मास्को से भारत आने वाली 40 वर्षीय इंगाबारादोश को काशी कुछ इस तरह भा गया कि वो वापस मॉस्को जाने के बाद भी अपने आपको काशी से अलग नहीं कर पाई। सिर्फ इतना ही नहीं वापस मॉस्को लौटने के बाद इंगाबारादोश सनातन के बारे में और भी जानने की कोशिश करती रहती थी। उनका कहना था जितना सनातन धर्म के बारे में जानती हूं उससे ज्यादा जानने की इच्छा और बढ़ जाती है। इसलिए वे बार बार भारत आकर काशी में रहती भी थी।

लेकिन कहते है न होता वहीं है जो आखिरकर भगवान को मंजूर होता है। शायद भगवान भी इंगाबारादोश  की भक्ति से इतना रीझ गए कि उन्होने ऐसा काम कर दिया कि अब इंगाबारादोश रूस की नहीं एक भारतीय बन कर अपनी जिंदगी बिताएंगी। 2011 में जब वे काशी आई थी तो उन्होंने पहली बार सनातन धर्म के बारे में जाना था।यही से सनातन के प्रति उनका झुकाव हो गया था। इसके बाद भी मॉस्को लौटने के बाद भी सनातन और वैदिक धर्म के बारे में जानती समझती रही। आखिरकर 2024 में उन्होेने वाराणसी जाकर सनातन धर्म अपना ही लिया।इसके बाद इंगाबारादोश ने वैदिक विधि से सनातन धर्म अपनाने के साथ ही गुरू दीक्षा भी ले ली।सनातन धर्म को लेकर उनका कहना है कि वे काशी के मंदिरों,वहां से निकलने वाली वैदिक ध्वनियों, यहां गंगा के घाटों से बहुत ही अधिक प्रभावित है। उनका मानना है कि सेवा ही परम धर्म है।    
 

काशी के लिए इंगाबारादोश कहती है कि काशाी आने के बाद उन्हें असीम ऊर्जा मिली। काशी उनके लिए आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बन गया है। उन्होेने कहा कि मैने सनातन धर्म को अपनाकर आज खुद को धन्य कर लिया है। काशी में सनातन धर्म अपनाने के बाद अब इंगाबारादोश का गोत्र कश्यप हो गया है। वाराणसी में उन्होंने माता तारा मंत्र की दीक्षा ली है। सनातन धर्म में आने के बाद अब इंगाबारादोश का नाम इंगानंदमई मां हो गया है। बता दें कि इंगाबारादोश पेशे से ट्रांसलेटर है और इनके पति माॉस्को में एक प्लेयर है। और उनका एक 10 साल का बेटा भी है। सनातनी बनने पर इंगाबारादोश ने बीते 2 साल से चल रहे रूस-यूक्रेन की खत्म होने के लिए यज्ञ भी किया। 

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