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ऐसा शिवलिंग जहां पुजारी से पहले अदृश्य शक्तियां करती है पुष्प और जल से अभिषेक


कानपुर। मंदिरों में चमत्करों होने की कहानिया अक्सर सुनने को मिल ही जाती है।क्योंकि भारत  कई धर्म और आस्‍थाओं का केंद्र है इसलिए इस तरह की कहानियों को अक्सर सुनने को मिल ही जाती है।   इनमें से कुछ चमत्‍कारों की कहानियां किवदंतियों के तौर पर एक से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती हैं तो कुछ आज भी होने वाले रहस्‍यमय कामों की वजह से पहचानी जाती हैं. ऐसे ही एक चमत्‍कार की कहानी मध्‍य प्रदेश के विदिशा के महादेव के मंदिर से भी जुड़ी है. 

इस मंदिर में रोज सुबह मंदिर के कपाट खुलने पर मंदिर के गर्भगृह का दृश्य कुछ ऐसा होता है कि व्यक्ति के भगवान के होने की आस्था और भी बढ़ जाती है। इस मंदिर में सुबह कपाट खोले जाने पर पुजारियों और सेवकों को शिवलिंग पर कुछ ऐसा मिलता है जो किसी चमत्‍कार से कम नहीं माना जा सकता है.

बता दें कि हर सुबह जब नीलकंठेश्वर मंदिर के पट खुलते है तो पहले से ही शिवलिंग पर फूल चढ़ा  हुआ मिलता है। साथ ही शिवलिंग का कोई जलाभिषेक भी कर जाता है। अब सोचने वाली बात ये है कि जब सुबह 4 बजे मंदिर के कपाट खोले जाते है और उससे पहले रात की शयन आरती के बाद मंदिर के गर्भगृह जहां शिवलिंग है, के कपाट ताले लगाकर बंद कर दिए जाते है तो आश्चर्य में डालने वाली बात ये है कि फिर गर्भगृह के कपाट खोलकर पूजा करने वाला व्यक्ति आखिर कौन है, और वह गर्भगृह में कहां से प्रवेश करता है, आखिर वह कितने समय पूजा कर जाता है, मंदिर के संदर्भ में ये कुछ ऐसे सवाल है जिनका जवाब किसी के पास नहीं है, और जिस प्रश्न का जवाब बुद्धि से नहीं मिलता यानि हमारी सोचने और तर्क शक्ति से परे होता है, उसे बिना किसी तर्क-कुतर्क के चमत्कार मान लेना बेहतर होता है। इस घटना भगवान के चमत्कार के रूप में देखे जाने की बात को इस बात से भी जोर मिलता है, क्योंकि गर्भगृह चारो ओर से दीवारे है, और उनमें कोई भी रोशनदान नहीं है। और ताला बंद करने के बाद चाभी सिर्फ और सिर्फ मुख्य मंदिर के मुख्य पुजारी के पास ही रहती है। और जब सुबह 4 बजे मुख्य पुजारी गर्भगृह के कपाट खोलते है तो शिवलिंग पर जलाभिषेक के साथ पुष्प मिलता है. जबकि मंदिर के परिसर में रात्रि के समय प्रवेश करना पूरी तरह प्रतिबंधित है। इसके लिए मंदिर परिसर में सुरक्षा के लिए कई पुलिस कर्मचारी भी तैनात रहते है। 

मंदिर के आस पास के क्षेत्र के लोग मंदिर में होने वाले इन चमत्कारों के बारे में कई कहांनियां भी सुनाते है। कुछ लोग मंदिर की चमत्कारिक घटनाओं  को इतिहास में राज करने वाले शासको से जोड़कर बताते है तो कुछ किसी अदृश्य व्यक्ति के द्वारा मंदिर के निर्माण करने की बात कहते है। उनके अनुसार मंदिर का रातोंरात निर्माण करने वाले व्यक्ति की परछाई आज भी मंदिर के शिखर पर देखी जाती है...

चलिए आपको मंदिर से जुड़ी दोनो कहानियों के बारे में बताते है....

पहली कहानी ऐतिहासिक राजाओं से जुड़ी है जिसपर ज्यादा लोग विश्वास भी करते है क्योंकि ये कहानी कहीं न कहीं उनके तर्क और सोच के खांचे में किसी न किसी प्रकार से फिट बैठती है। बताया जाता है कि परमार राजवंश के शासक शिव के उपासक रहे हैं. उन्‍होंने अपने 250-300 साल के राज में कई मंदिर भी बनवाए थे. नीलकंठेश्‍वर मंदिर का निर्माण परमार वंश के शासक राजा उदयादित्य ने करवाया था. मान्‍यता है कि बुंदेलखंड के सेनापति आल्हा और ऊदल महादेव के अन्यय भक्त थे. वही दोनों वीर हर रात यहां आकर महादेव की पूजा करने के बाद उन्हें कमल अर्पण करते है. फिर जब सुबह मंदिर के पट खोले जाते हैं तो महादेव के चरणों में फूल चढ़ा मिलता है. 

इस मंदिर से जुड़ी एक दूसरी मान्यता ये भी है कि महादेव के मंदिर को किसी अदृश्य व्यक्ति ने रातों-रात बनाकर तैयार किया था। जब वह व्यक्ति निर्माण पूरा करने के बाद मंदिर की चोटी से उतरकर नीचे आया तभी उसको ध्यान आया कि वह अपना झोला ऊपर मंदिर के शिखऱ पर ही छोड़ आया है। वह जब झोला उतारकर लाने के लिए फिर से ऊपर चढ़ा तो फिर नीचे कभी उतर ही नहीं आ पाया क्योकि उसके पहले ही मुर्गे ने बांग ने दे दी थी। ऐसे में वो व्यक्ति वही ंपर रह गया। लोगो को कहना है कि आज भी मंदिर आने जाने वाले लोगों को उसकी परछाई मंदिर के शिखर में दिख जाती है।

अब ये बात उन घुमक्कड़ों के लिए है जिनका नीलकंठेश्वर मंदिर के बारे मे सुनकर ये मन हो चला कि  चलों इस जगह भी घूम कर आते है, तो उन लोगों के लिए बता दें कि ये मंदिर विदिशा की गंज बासौदा तहसील के रेलवे स्टेशन से महज 22 किमी की दूरी पर उदयपुर गांव में है। नीलकंठेश्वर मंदिर जितनी अपनी रोचक कहानियों और चमत्कारों के लिए लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना है उतना ही चौकातीं है इस मंदिर की शिल्प कला। मंदिर की बनावट भोपाल के पास मौजूद भोजपुर महादेव  मंदिर से मेल खाती है। मंदिर की खंभो में बनी एक एक आकृति शिल्प कला का अद्भुत दृश्य दिखाती है।मंदिर का मुख्‍य द्वार इस तरह से बना हुआ है कि सूर्य की पहली किरण महादेव का अभिषेक करती है. इस मंदिर में महाशिवरात्रि पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठी होती है. यहां हर महाशिवरात्रि पर 5 दिन का मेला भी लगता है. नीलकंठेश्वर महादेव का मुख्य मंदिर परिसर के ठीक बीच में बना है. मंदिर के  तीन प्रवेश द्वार हैं. गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित हैं, जिस पर सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही उगते हुए सूरज की किरणें पड़ती हैं. वजह है कि शिवलिंग पर पीतल का आवरण चढ़ा हुआ है, जो केवल शिवरात्रि पर ही उतारा जाता है. 

हालांकि ये भी बता दें कि मुगलों ने आक्रमण करके मंदिर में बनी भगवान की प्रतिमाओं को खंडित कर दिया था। ये खंडित प्रतिमाएं आज भी मंदिर परिसर के चारों देखी जा सकती है। आक्रमणकारियों ने इन प्रतिमाओं को क्रूरता दिखाते हुए इतनी बुरी तरह क्षत-विक्षत किया है कि किसी प्रतिमा का मुंह गायब है तो किसी का हाथ नहीं है।देखकर ही लगता है कि मुगलों ने आक्रमण के समय इन प्रतिमाओं को नष्‍ट करने की पूरी कोशिश की होगी.


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