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पहले सर्वे, अब पूजा का आदेश, रिटायरमेंट के आखिरी दिन सुनाया ये फैसला; इतिहास में दर्ज जज का नाम



कानपुर। 355 वर्ष पुराने विवाद का पटाक्षेप कानूनी तरीके से होने की उम्मीद जगी है। जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश का नाम इतिहास में दर्ज हो गया है। वजह है जज साहब का अपने सेवाकाल के बिल्कुल आखिरी पड़ाव में किया गया ये फैसला। जी हा, हम उसी फैसला का जिक्र कर रहे है जो हाल ही में  वाराणसी के जिला जज से हिंदुओं के हक में आया है। ये वहीं फैसला है जिसके लिए हिंदू समाज पिछले 30 सालों से कोर्टों के चक्कर काट रहे थे। और अपनी आस्था के लिए अपने भगवान की पूजा अर्चना की मांग कर रहे थे। पूजा-अर्चना अपने आराध्य महादेव और माता गौरी की। जो वाराणसी जिसका प्राचीन पौराणिक नाम काशी है, और जिसके लिए ये बात कहीं जाती है कि काशी शहर साक्षात भगवान शंकर के त्रिशूल पर स्थित है, उसी काशी में महादेव के भक्त उनकी पूजा, उस पवित्र स्थान पर नहीं कर सकते जहां साक्षात शंकर जी उत्पन्न हुए थे।कैसी विडंबना है ये समय की। लेकिन अब एक ऐसा फैसला आयाा है जिसने महादेव के भक्तों के चेहरे पर खुशी ला दी है। 

आपको बता दे कि बीते दिन यानि 31 जनवरी को दोपहर के करीब 3.30 बजे वाराणसी के जिला जज का ऐसा फैसला आया कि यकीन ही नहीं हो रहा था कि हिंदुओं का 30 साल का इंतजार अब खत्म हो गया। अब वे भी अपने महादेव और माता गौरी के दर्शन और पूजन कर पाएंगे। इसके साथ ही हिंदुओं की उम्मीद जाग गई है कि 355 साल पुराने इतंजार का वक्त शायद जल्द ही खत्म होगा। और अब ऐसा लगता है कि अयोध्या की तरह जल्द ही वाराणसी में ज्ञानवापी केस का फैसला आ जाएगा। 

बताते चले  जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश ने जिस दिन हिंदुओं के लिए पूजा करने का फैसला सुनाया है....ये दिन इनकी जज की सेवा का आखिरी दिन था। जज ने पहले ज्ञानवापी में पहले सर्वे और अब व्यासजी के तहखाने में पूजा पाठ का आदेश दिया है।अपने इस आदेश के साथ ही  डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश का नाम ज्ञानवापी ऐतिहासिक मामले से जुड़े मुकदमें में फैसला देने से हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है।बता दें किवाराणसी के ज्ञानवापी का पूरा मसला उन्हीं के कार्यकाल में ही महत्वपूर्ण पड़ाव से गुजरा। जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने 21 अगस्त 2021 को जिला जज का कार्यभार संभाला था। इसके बाद 20 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मां शृंगार गौरी से संबंधित मुकदमे की सुनवाई जिला जज करें। सुनवाई चली और कोर्ट ने दोनों पक्षों को हर एक तर्क और कागजों को देखा और सुना।ये वहीं जिला जज है जिन्होंने पहली बार ज्ञानवापी के अंदर सर्वे करने का भी आदेश दिया था। 
लेकिन सर्वे करना इतना आसान नहीं था। सर्वे करने के दौरान सर्वे को गए अधिकारियों को कई मुसीबतोे का सामने करना पड़ा था। बता दें कि  जब कोर्ट का आदेश लेकर सर्वे के लिए अधिकारी ज्ञानवापी के अंदर गए तो वहां पर मुस्लिम धर्म के लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया।और सर्वे करने से रोक दिया। इसके बाद जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश ने आदेश पारित कर कहा कि सर्वे तो हो कर रहेगा, और जो भी सर्वे करने के बीच बाधा बनता है या उसे रोकता है तो उसके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए। और जब सर्वे को सफलता पूर्वक करने के बाद जिला जज को ज्ञानवापी सर्वे कि रिपोर्ट सौपी गई। उस सर्वे रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि ज्ञानवापी जो मस्जिद के रूप में खड़ा है वो आखिर में  हिंदुओं के एक भव्य ज्ञानवापी मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर बनाई गई है।इसके बाद ही डॉ अजय कृष्ण विश्वेश के जीवन में वो ऐतिहासिक दिन आया जिस दिन उन्होेने ये फैसला सुनाया  कि 30 साल बाद हिंदू एक बार फिर से व्यास जी के तहखाने की पूजा कर सकते है। यहीं वो ऐतिहासिक दिन था जब जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश का नाम इतिहास में दर्ज हो गया। 
 
आपकों बता दें कि ज्ञानवापी मंदिर भगवान शंकर का एक भव्य मंदिर था। जिसे मुगल आक्रांताओं ने तोड़कर उसके ऊपर टूटे मंदिर के मलबों का ही प्रयोग करके ढ़ाचे नुमा आकृति बना दी थी और उसे मस्जिद का नाम दे दिया था। लेकिन इसके बाद हिंदुओं ने वहां जाना छोड़ा नहीं, वे हमेशा से व्यास जी के तहखाने की पूजा-अर्चना किया करते थे। लेकिन 30 साल पहले आए पूजा स्थल कानून के बाद हिंदुओं  की पूजा पर रोक लगा दी गई थी।
 








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