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वृंदावन के बांके बिहारी की मूर्ति में छिपे है कई सारे रहस्य, मूर्ति गायब होने के पीछे थी ये वजह






कानपुर। जब भी आप कन्हैया का नाम लेंगे तो उसमें गोकुल और वृंदावन का बखान अपने आप ही आ जाता है। और जब आप कृष्णलीलाओं का जिक्र करेंगे तो उसमें वृंदावन के बांके बिहारी की बातें शामिल न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। कलियुग के लोगों ने द्वापर युग में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं को भले ही न देखा हो लेकिन कलियुग में जब वे ही कन्हैया बांके बिहारी के रूप में लीलाएं करते है तो उनके चमत्कारों को हम सबने सुना है। उन लोगों से  मिले भी है जिनके साथ कन्हैया ने लीलाएं की है। जी हां आप सभी ने वृंदावन के बांके बिहारी यानि कन्हैया की ढ़ेरों लीलाओं के बारे में सुना होगा। उनके भक्तों के बारे में भी सुना होगा। आज हम आपको बांके बिहारी के आंखों से जुड़ा एक रहस्य के बारे में बताएंगे.....
बताएंगे कि आखिर क्यों बांके बिहारी की आंखों में देखने के लिए मना किया जाता है। क्यों कहा जाता है कि अगर आप बांके बिहारी के दर्शन के लिए जा रहें है तो बस उनकी आंखों को एक टक मत निहारना?... 


बांके बिहारी का नाम लेते ही वृंदावन की कुंज गलियां याद आ जाती है। जगह जगह राधा नाम  का संकीर्तन याद आता है, बांके बिहारी के छप्पन भोग याद आते है और उनके मंदिर की सुंदर सजावट याद आती है और याद आती है उनकी लीलाएं जो बिहारी जी अक्सर अपने भक्तों को सुख देने के लिए करते ही रहते है। जो भी भक्त एक बार बांके बिहारी के दर्शन कर लेता है वो फिर बिहारी जी  का ही भक्त बन जाता है। इसलिए कहा भी जाता है कि अगर वृंदावन के बांके बिहारी के दर्शन के मंदिर के दर्शन  के लिए अगर जा रहे हो तो उनकी आंखो से आंखें कभी मत मिलाना। 
दरअसल बांके बिहारी की मूर्ति से आंखें मिलाने से ही एक बार मंदिर से मूर्ति गायब भी हो चुकी है। बताया जाता है कि एक बार राजस्थान की राजकुमारी, जयपुर से वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के दर्शन करने के लिए आई थी। उन्होंने जैसे ही मंदिर पहुंचकर मूर्ति के दर्शन किए तो वे बांके बिहारी की मूर्ति को एकटक काफी देर तक निहारती ही रही। मानों वे मूर्ति में खो गई हो। फिर जब गोस्वामियों ने उनको पकड़कर हिलाया तब वे अपने होश में आई। इसके बाद जब वे दर्शन करके चली गई। इसके बाद जब गोस्वामी जी संध्या आरती के लिए मंदिर के गर्भ गृह में गए तो वहां से बांकेबिहारी की मूर्ति गायब थी। सभी लोग अचंभे में पड़ गए आखिर बिहारी जी कहां चले गए। इधर राजकुमारी भी बिहारी जी का स्मरण करती हुई, अपने महल की ओर जा रही थी।इसके बाद  जब राजकुमारी अपने महल पहुंची तो राजकुमारी के साथ गई पालकियां खाली की गई। पालकी खाली करने वाला सेवक जब आखिरी पालकी को खाली करने के लिए गया तो उसने देखा कि इस पालकी में एक मूर्ति ऱखी है। इस बात की सूचना तुरंत राजकुमारी को दी गई।जब राजकुमारी ने मूर्ति के बारे सुना तो दौड़ी दौड़ी आई और जैसे ही उन्होंने बिहारी जी की मूर्ति को देखा तो उसको अपने सीने से चिपकाकर राजकुमारी खूब रोई। 

जब राजा ने मूर्ति के बारे में सुना तो उनको भी अचंभा हुआ ऐसे कैसे कोई मूर्ति अपने आप ही पालकी में आ सकती है। लेकिन जब मूर्ति के दर्शन करने पहुंचे तो राजकुमारी के श्री कृष्ण के प्रति प्रेम भाव को देखकर राजा ने महल के अंदर ही बिहारी जी की मूर्ति को रखवा दिया। फिर क्या था राजकुमारी दिन रात  कन्हैया के सेेवा करने लगी। इधर जब गोस्वामी जी लोगों को ये पता चला कि बिहारी जी की मूर्ति राजकुमारी के पास है तो वे सभी अपने ठाकुर को मनाने के लिए राजकुमारी के महल में पहुंच गए। उन्होंने राजकुमारी से बिहारी जी मूर्ति वापस देने के लिए निवेदन किया लेकिन राजकुमारी ने ऐसा करने से मना कर दिया। जब कई दिनों तक राजकुमारी को गोस्वामी जी के मनाने से राजकुमारी नहीं मानी तो आखिर में गोस्वामी जी ने रोकर बिहारी जी से प्रार्थना की आप हमारे साथ वापस चलिए....इस पर बिहारी जी ने राजकुमारी को सपने में कहा कि वे राजकुमारी के भक्ति भाव के कारण उनके साथ चले आए थे, लेकिन मुझे तो प्यारा अपना वृंदावन ही लगता है। नींद से जागने के बाद अगले ही दिन राजकुमारी ने मूर्ति को गोस्वामी जी को दे दी।और कहा कि कन्हैया को वृंदावन से कोई भी दूर नहीं रख सकता। 
मूर्ति पाकर सभी गोस्वामी बहुत खुश से लेकिन उन्हें ये बात समझ में नहीं आ रही थी कि मूर्ति आखिर राजकुमारी के पास आई कैसे....जब गोस्वामी जी ने ये प्रश्न राजकुमारी से पूछा तब राजकुमारी ने उत्तर दिया कि जब मैने पहली बार बिहारी जी की मूर्ति े के दर्शन किए तो मुझे उनकी आंखें बड़ी प्यारी लगी। मै एकटक उनकी आंखों को ही निहारती रही। और मन ही मन ये कहने लगी कि कन्हैया तुम्हारी सूरत में सबसे सुंदर तुम्हारी आंखे है।  मैं इस सूरत और इन आंखों के रोज दर्शन करना चाहती हूं। लेकिन मेरे लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं है लेकिन तू तो कुछ भी कर सकता है। मेरी ये इच्छा पूरी कर दे। तो शायद कन्हैया ने मेरी बाते सुन ली और मेरे साथ ही आ गया।  
इसके बाद गोस्वामी जी बिहारी जी को अपने साथ वृंदावन ले आए। इसी के बाद से बिहारी जी के मंदिर में हर मिनट पर्दा गिराया जाने लगा। कि कहीं किसी भक्त के एकटक देखने से बिहारी उनके पीछे पीछे न चले जाए।


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