श्री राम ज्योति ...
कानपुर। 22 जनवरी को राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में भारी उत्साह है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यजमान के नाते 11 दिन का अनुष्ठान के नियमों का पालन कर रहे है। नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी को श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन अयोध्या न पहुंचकर देश भर में श्रीराम ज्योति जलाने का लोगों से आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि श्रीराम के घर वापस आने पर पूरा देश रोशनी से जगमग हो जाए।
कैसे और कब हुई राम ज्योति की शुरुआत
राम ज्योति की शुरुआत अक्टूबर 2022 में श्री राम जन्मभूमि मंदिर की ज्योति से प्रज्ज्वलित करके की गई थी। अयोध्या से 'राम ज्योति' का पहला जत्था राजस्थान के लिए रवाना हुआ था। राजस्थान पहुंचने वाले इस जत्थे का उद्देश्य राम-ज्योति को राम लला के भव्य मंदिर में विराजने से पहले राजस्थान के 51 हजार मंदिरों तक डोर टू डोर पंहुचाना था. वहीं प्रत्येक मंदिर में 108 परिवारों को राम ज्योति को अखंड रखने व 108 दीपक जलाने का संकल्प दिलाना भी था। राजस्थान में इस बार रावण दहन इसी राम ज्योति से किया गया था।
राम ज्योति रोकने से सड़कों पर उतर आए थे हजारों लोग
श्रीराम मंदिर आंदोलन में शामिल रहे लोग आज भी उस दौर को भूल नहीं पाए हैं। अयोध्या से राममंदिर आंदोलन को तेज करने के लिए राम ज्योति निकाली गई थी। कहा गया था कि 1990 में दीपावली पर राम ज्योति से सभी अपने घर में दीया जलाकर ले जाएं। इन दियों से ही दीपावली के दीये जलाकर रोशनी होगी। 20 सितंबर 1990 को राम ज्योति मुजफ्फरनगर से बिजनौर के लिए रवाना हुई।प्रदर्शनी मैदान, हेमराज कॉलोनी व बैराज के पुल पर पुलिस ने बैरीकेटिंग लगा दी ताकि कोई बैराज की ओर कूच न कर सके। उसी बीच विद्यार्थी परिषद, आरएसएस समेत अन्य सक्रिय नताओं ने बैठकें शुरू कर दी। इन बैठकों का असर ये हुआ की युवाओं का जनसैलाब उमड़ पड़़ा। युवाओं के आगे किसी की नहीं चली और युवाओं ने पैदल ही बैराज की ओर कूच कर दिया। जिसे आगे चलकर बिजनौर में रोक दिया गया। बिजनौर में राम ज्योति को रोकने के बाद पूरे पश्चिमी यूपी में राम मंदिर आंदोलन की आग सुलग गई थी। इसके बाद यह आंदोलन फैलता चला गया था। हिंदूवादी नेता बैराज पर रोकी गई राम ज्योति को बिजनौर ले आए थे। पूरे जिले में निकलने के बाद राम ज्योति मुरादाबाद के लिए रवाना हुई थी। इस आंदोलन में जिले के तमाम बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया था।
सनातन-धर्म में दीप प्रज्जवलन का महत्व
भारतीय धर्म- दर्शन में दीप का अपना अलग महत्व है। सनातनियों के त्यौहार, दैनंदनी, पूजा-पाठ सभी दीपक के साथ रीतिबद्ध रहते है। प्रत्येक शुभ कार्य के पूर्व दीप प्रज्जवलन की अनूठी परंपरा सनातन काल से चली आ रही है।
हमारी आद्य़ भारतीय सनातन वैदिक परम्परा की दैनन्दिनी में ही दीप प्रज्जवलन- ॐ असतो मा सद्गमय।तमसो मा ज्योतिर्गमय।मृत्योर्मामृतं गमय ॥ अर्थात हे! परब्रह्म परमात्मा हमको असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर से चलो और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलों । के मंत्र के साथ किया जाता है।
दीप जलाने से अंधकार के नाश के साथ ही नवोत्साह, नवचेतना का प्रारंभ होता है। प्रत्येक शुभकार्य के साथ दीप प्रज्वलन की रीति लगभग यह सुनिश्चित कर देती है कि प्रारंभ किया गया कार्य कुशलतापूर्वक संपन्नता को प्राप्त करेगा व उसमें जीवन मूल्यों व संस्कारों के साथ आगे का पथ प्रशस्त होगा।
0 टिप्पणियाँ
अगर आप किसी टॉपिक पर जानकारी चाहते है,तो कॉमेंट करें।