कानपुर। जब से रामलला अपने भवन में वापस आए है तब से मानो कलियुग में त्रेता युग का प्रवेश हो गया हो।सेवा की बात करें तो सेवा में कोई कमी नहीं है। उनके सोने, खाने और मनोरंजन के लिए भी विशेष इंतजाम किए गए है। कड़ाके की ठंड के बीच रामलला के लिए ब्लोवर लगाया गया है। पुजारियों का कहना है कि रामलला इतनी सुबह उठ जाते है तब टेंपरेचर 2-3 डिग्री तक पहुंच जाता है। कहीं रामलला को ठंड न लग जाए इसलिए उनके गर्भगृह में ब्लोवर लगाया गया है।
बता दें....रामलला की नित्य पूजा रामोपासना संहिता के मुताबिक होती है।यह संहिता पौराणिक पूजा पद्धति व ग्रंथों के अध्ययन के बाद तैयार की गई है।रामलला की दिनचर्या इन दिनों सुबह 4:30 बजे से रात 10 बजे तक की है।
रामलला को अर्चक सुबह 4:30 बजे उसी तरह जगाते हैं, जैसे माता कौशल्या जगाती थीं। रामलला और गुरुओं की आज्ञा लेकर ही अर्चक गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। इसके बाद जय-जयकार करते हैं। बालक राम का बिस्तर ठीक किया जाता है। उन्हें मंजन कराया जाता है।
राजकीय पद्धति से स्नान कराया जाता है। रामलला को वस्त्र पहनाकर मुकुट धारण कराया जाता है। वह राजकुमार हैं। इसलिए खुले सिर किसी के सामने नहीं जाते। इसके बाद उन्हें उनकी रुचि के अनुसार फल, रबड़ी, मालपुआ, मक्खन, मिश्री, मलाई आदि का भोग लगता है। रामलला को खीर बहुत पसंद है। इसके बाद मंगला आरती होती है।
फिर रामलला को सफेद गाय और बछड़े के अलावा गज के दर्शन कराए जाते हैं। गाय और बछड़े के तो साक्षात दर्शन होते हैं, लेकिन गज दर्शन के लिए ट्रस्ट ने स्वर्ण गज की व्यवस्था की है। राजकुमार अपने स्वभाव के अनुरूप रोज दान करते हैं। बालभोग और श्रृंगार आरती के बाद प्रभु दर्शन देते हैं। यह पूरी प्रक्रिया सुबह 6:30 बजे तक पूरी होती है।
रामलला को 11:30 बजे राजभोग लगता है। इसकी पद्धति भी तय है। 12 बजे राजभोग आरती होती है। पद सुनाए जाते हैं। संगीत की सेवा होती है। शाम 6:30 बजे संध्या आरती होती है। रात में 10 बजे शयन आरती होती है। शयन आरती से पहले नौ बजे भोग लगाया जाता है। उसके बाद प्रभु को संगीत सुनाकर रिझाया जाता है।
प्रभु को शयन के अनुरूप ही वस्त्र पहनाए जाते हैं। ठंड की वजह से हीटर और ब्लोअर लगाया गया है। गर्मी में एसी लगाया जाता है। शयन के समय बाहर आते समय अर्चक द्वारपाल से बोलकर निकलते हैं कि भगवान को रात में कुछ जरूरत हो तो उनका ध्यान रखें। भगवान के पास पीने के लिए पानी रखा जाता है, ताकि उन्हें रात में प्यास लगे तो वे पानी पी सकें।
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