मानव देह का महत्व
संसार का प्रत्येक जीव कर्मशील दिखाई देता है। पशु - पक्षी , कीट- पतंग सभी तो कर्म करते हैं | यहाँ तक कि स्वर्ग के देवता भी कर्म करते हैं। किंतु इनमें से किसी का भी कर्म स्वतंत्र नहीं है या यूँ कह लीजिए की उनका कर्म परतंत्र है। वो पुरुषार्थ से ऐसा कर्म नही कर सकते , जिससे वे अपने अनंत जन्मों के संचित कर्म को भस्म कर दें और भविष्य के अनंत काल को बना लें।
चूँकि यह कमाई नाम की चीज़ , पुरुषार्थ नाम का तत्व उनके साथ नहीं रह सकता , इसलिए ये सब भोग योनि के अंतर्गत आते हैं।
आइए , अब हम मानव योनि पर विचार करें
मानव योनि ही एक ऐसी योनि है , जिसमें आकर हम वास्तव में कर्म कर सकते है।
मानव देह बड़ा कमाल का है। एकमात्र मानव देहधारी जीव ही यह शक्ति रखता है कि वह जिस जीव से चाहे अपने अनुरुप कर्म करवा ले , उनको गुलाम बना ले। उनके द्वारा अपनी सेवा ले।
पशु-पक्षी , कीट-पतंग , अथवा देवता सभी आनंद चाहते हैं , लेकिन चौरासी लाख योनियों मे यह शक्ति सिर्फ मानव को ही प्राप्त है कि वह अपने सुख के लिए अन्य चेतन जीवों को गुलाम बना ले , अपना दास बना ले। इन चेतन जीवों के नीचे आते हैं स्थावर , जड़ , अचर।
अब वृक्ष को ही लीजिए, इनको भोग्य बनाते हैं ये चेतन जीव ! गाय-भैंस को हमने देखा है घास चरते या पेंड़ के पत्तों को खाते हुए।
इधर मानव ने इन चेतन एवं स्थावर दोनों को ही अपना भोग्य बनाया है।
इस प्रकार जड़-चेतन दोनों को मनुष्य ने दास बनाया है। अब आप सोच रहे होंगें कि देवता तो मनुष्य के दास नही हैं ! हाँ , देवता भी मनुष्य के दास बनते हैं। आप सिद्धि कर लें , तो देवता भी आपकी गुलामी करेंगें । आपने इतिहास - पुराण में पढ़ा होगा कि अनेकानेक लोगों ने देवताओं की सिद्धि की थी। रावणादिकों के यहाँ यमराज आदि देवतागण नौकर - चाकर थे।
यह सब सुनकर आप आश्चर्यचकित हो रहे होंगें , किंतु इसमें इतनी चौंकने की कोई बात नहीं है क्योंकि इस मानव योनि का ऐसा कमाल ही है कि स्वयं भगवान इसके दास बन जाते हैं , फिर इन देवताओं की क्या गिनती !
अहं भक्तपराधीनो ह्मस्वतन्त्र इव द्विज
भगवान कहते हैं - मैं तो परतंत्र हूँ , भक्तो का दास हूँ । भक्तों ने मेरा ह्रदय खा लिया है । मुझको क्रीतदास बना लिया है , खरीदा हुआ गुलाम बना लिया है ।
हाँ! यह बात अलग है कि यह कमाल तभी हो सकता है , जब हमारा पुरुषार्थ पूर्ण शरणागति का हो। हमारी शरणगति , हमारे प्रेम से बँधकर ऐसे स्वतंत्र परात्पर सर्वशक्तिमान भगवान परतंत्र बन जाते हैं। सिर्फ परतंत्र ही नहीं नित्य परतंत्र बन जाते है।
अब तो भक्त ही ईश्वर से कहता है -
ह्रदय ते जब जाओगे मर्द बदौंगो तोय
आपके मस्तिष्क में यह बात अवश्य आ रही होगी कि हमें तो यह सौभाग्य प्राप्त नही हुआ।
अब यह भी कोई बात है ! बिना मेहनत के भला कुछ प्राप्त होता है !! बिना प्रयास के कभी किसी को कुछ मिला है ? जब आपने भगवत्प्राप्ति के लिए प्रयास ही नही किया है , तो आपकी बात कैसे बन सकती है ?
यह तो आपकी कमी है। अगर कोई कमर कस ले कि हम भगवत्प्राप्ति करके रहेंगें तो उसे भला उसे कौन रोक सकता है। भगवान तो भुजाएँ पसारे सदा ही तैयार है हमें अपनाने को ,वो तो तैयार वैठे है अपने भक्तों के प्रेमाधीन हो जाने को , उनके हाथ बिक जाने को , उनकी दासिता करने को। कर्म करने में स्वतंत्र मानव को कर्म करने की यह स्वतंत्रता उसे विशेषाधिकार के रुप में प्राप्त हुई है।
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