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संकल्प! जो भारत की गौरवशाली विरासत को अपनी प्राचीन महानता के शिखर तक पहुंचा सकता है


दिल्ली। समर्पिता 
कोई भी महत्वपूर्ण दिन जिसे इतिहास में अमर बनाए रखना होता है, उसे हम लोग पर्व के रूप में मनाते हैं | जिससे उस दिन हुई घटना की पुनरस्मृति होती रहे और हम ये आत्म समीक्षा भी करते रहें कि हम कहाँ थे? और अब कहाँ पहुँच गए हैं एवं हमें जाना कहाँ है ? 

26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत देश का संविधान लागू हुआ और तब से हमारा देश एक विकसित देश, एक सुसमृद्ध देश की परिकल्पना को साकार बनाने का प्रयास कर रहा है।
हमारे भारत ने इस दिशा में बहुत से सकारात्मक प्रयास भी किए हैं जिसके फलस्वरूप हम भारत की भौतिक स्थिति, जन साधारण के जीवन स्तर आदि में परिवर्तन का अनुभव भी कर रहे हैं | हम सबकी यात्रा आज इस स्थान पर पहुँच चुकी है जहाँ पर खड़े होकर हम सब एक बड़े संकल्प को लेने के लिए तैयार हो गए हैं।
एक ऐसा संकल्प जो भारत की गौरवशाली विरासत को अपनी प्राचीन महानता के शिखर तक एक बार फिर पहुँचा सकता है। हम 130 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत देश को जिसमें विभिन्न धर्मों वाले लोग रहते हैं, जो तरह तरह की भाषा बोलते हैं, जो तरह तरह की मान्यताओं और परंपराओं से जुड़े हैं, उन सबको महानता के शिखर तक ले जाने की बात बोल रहे हैं। ये कोरी कल्पना नहीं है या एक दिवास्वप्न नहीं , बल्कि संभव है ! जब हम 2047 को लक्ष्य करके एक विकसित भारत की रूपरेखा सुनिश्चित करते हैं तो प्रश्न यह उठता है कि वर्तमान समय में हम कितना बड़ा पुरुषार्थ कर रहे हैं, कितनी मेहनत कर रहे हैं और किस दिशा में कर रहे हैं ?
 क्या केवल भौतिक समृद्धि, आर्थिक स्वतंत्रता उसी को हम भारत के विकसित होने की परिभाषा मान रहे हैं? अगर हाँ , तो सामने उदाहरण के रूप में बहुत से विकसित देश हैं जहाँ भौतिक संपन्नता की कोई कमी नहीं लेकिन वहाँ के नागरिकों के निजी जीवन में सुख और शांति का अभाव है | यह सिद्ध करता है कि भारत जैसे बुद्धिमान देश का लक्ष्य इतना छोटा नहीं हो सकता। भारत का इतिहास साक्षी है कि यह विश्व को गुरु बना रहा है | यहाँ की संस्कृति धरातल से जुड़ी है और यहाँ की सोच ब्रह्मांड से बहुत आगे की सोच है |
यह वह भूमि है जहाँ पर स्वयं ब्रह्मांड नायक ईश्वर श्री कृष्ण व उनकी कृपा शक्ति श्री राधा भी मानव बनकर आती है और समय समय पर हमारा मार्गदर्शन स्वयं करते है | हम वो सौभाग्यशाली धरती पर जन्मे भारतवासी हैं जिनके पूर्वज ऐसे महान तपस्वी हुए हैं कि उन्होंने अपने पुरुषार्थ से दिव्य लोक में रहने वाली गंगा को धरती पर नदी के रूप में प्रवाहित कर दिया |      

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