वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट करीम अहमद सिद्दीकी जी ने बताया कि घरेलू हिंसा कानून 2005 मे बना परंतु कानून को कभी पारित नहीं किया गया। इसके पूर्व 498 के तहत एफ. आई. आर. दर्ज कराई जाती थी जिसमें भावनात्मक एवं मानसिक हिंसा को शामिल नहीं कर सकते थे। घरेलू हिंसा कानून एक ऐसा कानून बना जहां इन सभी विषयों को गंभीरता से लिया गया तथा बेहतर तरह से महिलाओं के मुद्दे को बहुत बारीकी से शामिल किया गया है चाहे वह बच्चे की कस्टडी हो या गुजारे हेतु धनराशि । आप सभी घबराएं नहीं बल्कि अपने मुकदमे में कर पैरवी करें न्याय आपके पक्ष में ही होगा।
अधिवक्ता चंद्रकांता शर्मा जी ने कहा कि दहेज उत्पीड़न कानून में हम लोगों को यह कोशिश करनी है कि घर में जो रह रहे हैं उन्हीं को एफ आई आर में पार्टी बनाएं ज्यादा लोगों को पार्टी बनाने पर अक्सर लोग टूट जाते हैं। आपसे कि केंद्र के माध्यम से आएंगी तो कभी कोई वकील आपके साथ बेमानी नहीं करेगा। जब तक आप अपनी बात सही तरीके से नहीं रखेंगे तो शायद आपको न्याय मिलने में भी असुविधा होगी।
इसके अलावा एडवोकेट परवेज अहमद एवं मोहम्मद सुफियान इत्यादि ने परामर्श दिए । कार्यक्रम में घरेलू हिंसा बलात्कार दहेज उत्पीड़न पारिवारिक विवाद संपत्ति विवाद अपहरण पार्क से अन्य विवाद विवाह उत्तर संबंध सीनियर सिटीजन से जुड़े लगभग 55 गंभीर मामलों को एडवोकेसी में पेश कराया गया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से अर्चना पांडे, पुष्पा तिवारी, ममता गुप्ता, कंचन शर्मा, मीना प्रताप इत्यादि की सहभागिता रही।
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