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ओलंपिक!

क्रीड़ा करना या खेलना हर प्राणी के स्वभाव में होता है। मनुष्य ही नहीं पशु पक्षियों को भी खेलते हुए देखा गया है। जंगल में बंदरों, भालुओं तथा अन्य जंगली जानवरों को खेल खेलते हुए देखा जा सकता है। सृष्टि के आदिकाल से ही मनुष्य मनोरंजन के नए-नए साधन खोजता आया है। खेल भी मनोरंजन की लालसा से ही जन्मा है। कुछ खेलों में शारीरिक क्षमता का अधिक प्रयोग होता है तो कुछ में मस्तिष्क का। खेलों से शरीर स्वस्थ और शक्तिशाली बनता है। मांसपेशियां मजबूत होती है और शरीर में रक्त का संचार तीव्र हो जाता है। खेल खेलने से हमारे मन में प्रतियोगिता की भावना पैदा होती है। खिलाड़ी मिलजुल कर खेलते हैं इसलिए उन्हें पारस्परिक सहयोग की भावना पैदा होती है। खेल में त्याग भावना भी रहती है। खिलाड़ी अपने लिए नहीं बल्कि टीम के लिए खेलता है। देश के लिए भी खेलता है। किसी भी खेल में विशेष योग्यता प्राप्त करने के लिए लगन और अथक प्रयास की आवश्यकता है।

विश्व में ओलंपिक का इतिहास
6 अप्रैल 1896 को विश्व में सबसे पहले आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत हुई थी। विश्व के पहले आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन 6 अप्रैल 1896 को ग्रीस की राजधानी एथेंस में हुआ था।इसका श्रेय फ्रांस के अभिजात्य वर्ग के कुवर्तेन को जाता है। चूंकि ये खेल ओलंपिया पर्वत पर खेला गया था इस कारण इसका नाम ओलंपिक पड़ा।
प्राचीन काल में शांति के समय खेल प्रतिस्पर्धा योद्धाओं के लिए मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। यहीं से खेलों का विकास भी हुआ। इन खेलों के माध्यम से योद्धा अपनी ताकत का प्रदर्शन किया करते थे। दौड़, मुक्केबाजी, कुश्ती और रथों की दौड़ आदि खेल के साथ-साथ सैनिकों की प्रशिक्षण का हिस्सा भी हुआ करते थे। उस दौरान लड़ाई और घुड़सवारी लोकप्रिय खेलों में शामिल थे। और खेल के विजेता को कविताओं  और मूर्तियों के जरिए पुरस्कृत किया जाता था।

समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती के अनुसार प्राचीन ओलंपिक खेलों का आयोजन 1200 साल पहले योद्धा खिलाड़ियों के बीच हुआ था। हालांकि ओलंपिक का पहला आधिकारिक आयोजन 776 ईसा पूर्व में हुआ था। जबकि आखिरी बार इसका आयोजन 394 ईसवी में हुआ था। इसके बाद रोम के सम्राट ने इसे मूर्ति पूजा वाला उत्सव करार देकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया था।

 इसके बाद लगभग 150 सालों तक यह खेल किसी भी समाज के मनोरंजन का हिस्सा नहीं बने। हालांकि मध्यकाल में अभिजात्य वर्गों के बीच इस तरह की प्रतिस्पर्धा जारी रही। लेकिन इन्हें खेल आयोजन का आधिकारिक दर्जा नहीं मिल सका।

19वीं शताब्दी में यूरोप में सभ्यता के विकास के लिए प्राचीन काल की इस परंपरा को पुनर्जीवित किया गया। फ्रांस के बैरों पियरे डी कुवर्तेन का इस परंपरा को शुरू करने में अहम योगदान रहा।
 कुवर्तेन के प्रमुख दो लक्ष्य थे, एक खेलों को अपने देश में लोकप्रिय बनाना। दूसरा विश्व के सभी देशों को एक शांतिपूर्ण प्रतिस्पर्धा के लिए एकत्रित करना।
कुवर्तेन के अनुसार खेल युद्ध को टालने के लिए सबसे अच्छे माध्यम हो सकते हैं। इसी आधार पर 1896 में सबसे पहले आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन ग्रीस की राजधानी एथेंस में हुआ। ओलंपिक अपने शुरुआती दशकों में अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा क्योंकि कुवर्तेन के विचारों को किसी भी बड़ी शक्ति का साथ नहीं मिला था। पहले ओलंपिक में 14 देशों के 241 खिलाड़ियों ने इन खेलों में भाग लिया जिसमें 9 खेलों के 43 आयोजन संपन्न हुए।
43 प्रतियोगिताओं में पहली बार मैराथन दौड़ भी शामिल किया गया था। इस आयोजन का कुल खर्च 37,40,000 ड्रैकमस (यूनानी करेंसी) था।

शुरुआती दशक के साल 1900 तथा 1904 में पेरिस तथा सेंटलुई में हुए ओलंपिक के दो संस्करण भव्यता की कमी के कारण खासा लोकप्रिय नहीं हो सके थे।

ओलंपिक खेलों को अपनी पहचान लंदन में चौथे संस्करण के सफल होने के साथ मिली। इसमें 2000 एथलीटों ने भाग लिया। जोकि पिछले तीन आयोजनों की संख्या से कहीं अधिक संख्या थी।

साल 1930 के बर्लिन संस्करण में आते-आते सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर जारी प्रतिस्पर्धा के कारण नाजियों ने तो इसे अपनी ताकत और शिष्टता को साबित करने का माध्यम ही बना लिया था। प्रतिस्पर्धा के इस नए स्वरूप ने ओलंपिक में एक नई जान डाल दी।


ओलंपिक में सोवियत संघ–अमेरिका का इतिहास
1950 के दशक में सोवियत–अमेरिका का प्रतिस्पर्धा के खेल में प्रतिभागी होने से ओलंपिक की ख्याति को नया आयाम मिला था। इसके बाद से खेल और राजनीति एक दूसरे से ऐसे जुड़े जिन्हें आज तक अलग नहीं किया जा सका। इसका एक कारण यह भी था कि सोवियत और अमेरिका दो ऐसी महाशक्तियां थी जो कभी भी खुलकर मैदान में नहीं लड़ सकीं। बजाय इसके उन्होंने ओलंपिक मैं श्रेष्ठ होना ही अपनी श्रेष्ठता का नया पैमाना बना दिया था।
पदकों को हासिल करने की होड़ में वर्ष 1968 के मेक्सिको ओलंपिक में सोवियत संघ को अमेरिका के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था। जिसका बदला सोवियत संघ अपनी 50 वीं वर्षगांठ पर, 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में अमेरिका को हराकर चुकाया था।
इस ओलंपिक में सोवियत एथलीटों ने 50 स्वर्ण पदकों के साथ कुल 99 पदक जीते। यह संख्या अमेरिका के जीते पदकों के तिहाई से भी अधिक थी।

इसके बाद सन 1980 में अमेरिका के साथ पश्चिम के मित्र देशों ने 1980 के मास्को ओलंपिक में भाग लेने से इनकार कर दिया। जिसका हिसाब सोवियत संघ ने 1984 के लॉस एंजलिस ओलंपिक का बहिष्कार करके चुकाया साल। 1988 के सियोल ओलंपिक में सोवियत संघ ने 132 पदक जीतकर अपनी श्रेष्ठता साबित की। इसमें 55 स्वर्ण पदक शामिल थे। वहीं अमेरिका को 34 स्वर्ण सहित 94 पदक मिले थे। इस ओलंपिक में पूर्वी जर्मनी के बाद अमेरिका तीसरे स्थान पर रहा।
वर्ष 1992 के बर्सिलोना ओलंपिक में भी सोवियत संघ ने अपना दबदबा कायम रखा। हालांकि उस वक्त तक सोवियत संघ का विघटन हो चुका था। रूस ने इस ओलंपिक में एक संयुक्त टीम के रूप में हिस्सा लिया था, जिसमें उसने 112 पदक जीते इसमें 45 स्वर्ण पदक थे। वहीं अमेरिका को 108 पदक मिले जिसमें 37 स्वर्ण पदक शामिल है।
साल 1996 के अटलोटा और 2000 के सिडनी ओलंपिक में रूस गैर–आधिकारिक अंक तालिका में दूसरे स्थान पर रहा। 2004 के एथेंस ओलंपिक में उसे तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा था।

2008 के बीजिंग ओलंपिक को अब तक का सबसे यादगार आयोजन माना गया 15 दिन तक चले इस आयोजन ने ना सिर्फ अपनी मेजबानी से सभी दर्शकों का दिल जीता बल्कि सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास भी रच डाला।
ओलंपिक आयोजनों की इस श्रृखला में पहली बार चीन पदक तालिका में सबसे ऊपर रहा, जबकि अमेरिका को दूसरे स्थान के साथ ही संतोष करना पड़ा।


ओलंपिक में भारत का सफर:अद्भुत, रोमांचकारी!
भारत ने 1900 में पहली बार पेरिस ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया। जहां देश के एकमात्र प्रतिनिधि के तौर पर नॉर्मल प्रिचर्ड शामिल हुए। उन्होंने 200 मीटर स्प्रिंट और 200 मीटर हर्डल रेस में दो रजत पदक जीते। इसके बाद भारत ने 1920 के एंटवर्प ओलंपिक में अपना पहला दल भेजा। जिसमें 5 एथलीट शामिल थे इनमें से तीन ने एथलेटिक्स में और 2 ने पहलवानी में हिस्सा लिया था। 1924 के पेरिस ओलंपिक में भारत ने पहली बार टेनिस में हिस्सा लिया था। 5 खिलाड़ियों, चार प्रमुख और एक महिला ने एकल स्पर्धा में हिस्सा लिया। दो जोड़ियों ने पुरूष युगल और एक मिश्रित युगल में हिस्सा लिया।
1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक से भारतीय हॉकी के स्वर्णिम युग की शुरुआत हुई। भारत की पुरुष हॉकी टीम के दिग्गज हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के नेतृत्व में अपने शानदार 29 गोल किए और अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता। इस संस्करण में उपलब्धि यह रही कि खेल में भारतीय टीम ने अपना एक भी गोल नहीं खोया। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने अपनी जीत की हैट्रिक 1932 के  लॉस एंजिलिस ओलंपिक और 1936 के बर्लिन ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर पूरी की। हैट्रिक के साथ ही खुद को दुनिया की सबसे प्रभावशाली हॉकी टीम के रूप में साबित भी किया हालांकि भारत ने यह सारी उपलब्धियां तब हासिल की जब भारत पर ब्रिटिश शासकों की हुकूमत थी। 

1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली, तो 1948 के लंदन ओलंपिक के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में भारत ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हिस्सा लिया। स्वतंत्रता के बाद भारत का ओलंपिक में यह पहला हिस्सा था। इसमें भारत ने अपना पहला सबसे बड़ा दल (9 खेलों में 86 एथलीट) भेजा। एक बार फिर हॉकी टीम ने लंदन की सरजमी पर तिरंगे को सबसे ऊंचा फहराया। इस बार वह अपने चौथे ओलंपिक स्वर्ण पदक के साथ लौटी। स्वर्ण पदक का श्रेय टीम के कप्तान बलवीर सिंह सीनियर को दिया गया। 1952 और 1956 में भी टीम ने ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक के साथ अपना जलवा कायम रखा।

1948 के लंदन ओलंपिक खेलों में भारतीय फुटबॉल टीम ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन किया। लेकिन फ्रांस के साथ हुए कड़े मुकाबले में भारत यह मैच हार गया।

 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में भारत को एक ऐतिहासिक पल भी देखने को मिला। इसमें पहलवान केडी जाधव व्यक्तिगत ओलंपिक पदक ,कांस्य जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने थे।

इसी ओलंपिक में ही नीलिमा घोष स्वतंत्र भारत की पहली महिला एथलीट के रूप में उभरी। नीलमा ने महज 17 साल की उम्र में 100 मीटर स्प्रिंट और 80 मीटर हर्डल रेस में हिस्सा लिया।

1956 में मेलबर्न आयोजित ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम को कांस्य पदक के प्लेऑफ में हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद 1960 में मिले रजत पदक से ही टीम को संतोष करना पड़ा। ओलंपिक के इस संस्करण में दिग्गज एथलीट मिल्खा सिंह 400 मीटर में कांस्य पदक जीतने से चूक गए थे।

 1964 के टोक्यो ओलंपिक में एक बार फिर भारतीय हॉकी टीम ने छठे स्वर्ण पदक के साथ एक बार फिर अपना दमदार खेल दिखाया।

1968 के मैक्स को ओलंपिक और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में भारत को कांस्य पदक से ही मन भरना पड़ा। 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में आते-आते भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक खेलों के अपने सबसे खराब प्रदर्शन के साथ निचले सातवें स्तर पर पहुंच गई। 1924 के ओलंपिक में भारत को एक भी पदक नसीब नहीं हुआ था।
इसके बाद 1980 के मास्को ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने चैंपियन बन एक बार फिर अपना खोया हुआ सम्मान वापस पा लिया।1980 का यह पदक ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का अंतिम पदक था।

भारत ने भी ओलंपिक में अपना बुरा दौर देखा जो 1980 से लेकर 1984 के लॉस एंजलिस ओलंपिक और 1988 के सियोल ओलंपिक से लेकर 1992 की बर्सिलोना ओलंपिक तक चला। यह वह समय था जब भारत में मानो पदकों का सूखा पड़ गया हो। हालांकि 1984 के ओलंपिक में पीटी उषा, 400 मीटर हर्डल रेस में चौथे स्थान पर रही थी।

1996 के अटलांटा ओलंपिक ने भारत में पड़े अकाल को खत्म किया। इस संस्करण में दिग्गज टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस ने पुरुष एकल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। 

इसके 4 साल बाद कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में इतिहास रच दिया। वह कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं। 2004 के एथेंस में पुरुषों के ट्रैप में राज्यवर्धन सिंह राठौर ने निशानेबाजी में रजत पदक जीता। यह भारत के इतिहास में पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक था।

2008 बीजिंग ओलंपिक में एक बार फिर भारत को सोना मिला और इसका श्रेय अभिनव बिंद्रा को जाता है। अभिनव ने निशानेबाजी की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में देश का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता। साथ ही बॉक्सर विजेंद्र सिंह और पहलवान सुशील कुमार ने भी कांस्य पदक भारत की झोली में डाले। यह 1952 के बाद से पहला मौका था जब भारत ने एक ही ओलंपिक में कई पदक जीते।

इसके बाद भारत को ओलंपिक में पदक जीत दिलाने में महिला व पुरुष खिलाड़ियों ने जान लगा दी।
2012 लंदन ओलंपिक बैडमिंटन में भारत को पहला ओलंपिक पदक साइना नेहवाल ने दिलाया। साथ ही सुशील कुमार, गगन नारंग, विजय कुमार, मैरीकॉम और योगेश्वर दत्त ने भी उस संस्करण में पदक जीते इस संस्करण में भारत ने कुल 6 पदक जीते। पहली बार भारत ने ग्रीष्मकालीन खेलों में सबसे अधिक पदक हासिल किए।

रियो 2016 में सिर्फ पीवी सिंधु और साक्षी मलिक ही भारत को पदक दिलाने में सफल रहे। यह भारतीय इतिहास का वह समय था जब सिर्फ महिलाओं ने पदक जीते।


परचम लहराती बेटियां
भारत एक ऐसा देश है जहां समाज में पुरुषों को सबसे ऊपर रखा जाता है। ऐसे पित्रात्मक सोच वाले समाज में बेटियों को अपनी पहचान बनाने के लिए पारिवारिक व सामाजिक स्तर पर कई चुनौतियां का सामना करना पड़ता है।अगर बात खेलों की हो तो, बेटियों के लिए एक नई चुनौती लिंगभेद भी समस्या बन जाता है।  लेकिन इन सभी चुनौतियों के बाद भी जिस तरह भारत की बेटियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। वह काबिल–ए–तारीफ है।

भारतीय खेलों के इतिहास को गौरवान्वित करने वाला पहला क्षण 2000 सिडनी ओलंपिक में आया। वेटलिफ्टिंग में महान कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक अपने नाम किया। तब से उन्हें "लोहे की महिला" के नाम से भी जाना जाने लगा। मल्लेश्वरी आज भी ओलंपिक में पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय वेटलिफ्टर है। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि वह ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला थी।
इससे पहले 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में भारत को अपनी पहली महिला ओलंपियन मेरी डिसूजा मिली। डिसूजा ने 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में हिस्सा लिया। और पांचवें वह सातवें पायदान पर हासिल किया।

मल्लेश्वरी भले ही भारत को स्वर्ण पदक दिलाने से चूक गई हों लेकिन वे भारतीय महिला एथलीटों में आत्मविश्वास जगाने में सफल रही। 
उनसे प्रेरित होकर भारत की अन्य महिला एथलीट जैसे एमसी मैरीकॉम, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा, पीवी सिंधू, साक्षी मालिक नेे बाधाओंं से लड़कर खुद को आगेे बढ़ाया और ओलंपिक में मेडल जीतकर दुनिया में भारत का गौरव बढ़ाया।

• साइना नेहवाल:  "मैं श्रेष्ठ बनना चाहती हूं..."
2012 लंदन ओलंपिक में साइना नेहवाल ने कांस्य पदक जीता जो ओलंपिक खेलों में भारत का पहला पदक था। साइना इससे पहले भी राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में कई पदक जीत चुकी हैं। लेकिन जब साइना ओलंपिक पदक के साथ भारत लौटी तो भारतीय युवा और ओलंपिक का सपना देखने वालों के लिए एक आदर्श बन गई।
साइना कहती हैं "मैं सर्वश्रेष्ठ बनना चाहती हूं यह रैंकिंग के बारे में नहीं है यह दरअसल समय की अवधि के अनुरूप होने के बारे में है।"

• एम सी मैरी कॉम:  "बॉक्सिंग सिर्फ पुरुषोंं के लिए नहीं!"
चाहे 6 विश्व खिताब हो या गर्भावस्था के बाद रिंग में वापसी, मैरी कॉम का जीवन महिला एथलीटों के लिए व किसी भी मुक्केबाज के लिए प्रेरणा स्रोत है। मैरीकॉम ने अपने एक बयान में कहा था कि बॉक्सिंग एक मर्द का खेल है! हालांकि उन्होंने बॉक्सिंग में 6 बार विश्व चैंपियनशिप बनकर इसका जवाब भी दिया। जिसके बाद से उन्हें "शानदार मैरी" कहकर बुलाया जाने लगा।

मैरी कॉम
"लोग कहते थे कि मुक्केबाजी पुरुषों के लिए है ना कि महिलाओं के लिए और मैंने सोचा कि मैं किसी दिन उन्हें दिखाऊंगी मैंने खुद से वादा किया और खुद को साबित किया।"

निसंदेह भारत के इतिहास में पुरुषों में भी शानदार मुक्केबाज रहे, लेकिन मणिपुर की "शानदार मैरी" ने मुक्केबाजी के पिछलेेे सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए और राष्ट्र केेेेेेे लिए एक नई प्रेरणा स्रोत के रूप में उभरी।

• पीवी सिंधू : "सबसे बड़ी संपत्ति एक मजबूत दिमाग!"
भारत के कुछ चुनिंदा एथलीट ही ओलंपिक में रजत पदक हासिल कर पाए। बैडमिंटन खेल में ऐसा मुकाम हासिल करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी पीवी सिंधू है।  रियो ओलंपिक 2016 में मिली उपलब्धियों ने सिंधु के जीवन को गति दी। जबकि बीडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिप में उनकी ऐतिहासिक जीत ने भारत को बैडमिंटन में टॉप देशों के साथ लाकर खड़ा कर दिया था। 
पीवी सिंधू और साइना नेहवाल ने बैडमिंटन में भारत को वैश्विक प्रतिष्ठा दिलाई है।
सिंधु कहती हैं  "सबसे बड़ी संपत्ति एक मजबूत दिमाग है अगर मुझे पता है कि कोई मुझसे ज्यादा कठिन प्रशिक्षण कर रहा है तो मेरे पास कोई बहाना नहीं है।"

• साक्षी मालिक: "मैंने आज तक कभी हार नहीं मानी!"
भारत का कुश्ती ओलंपिक में इतिहास शानदार रहा है। 1952 में केडी जाधव से लेकर सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त आदि पहलवानों ने भारत की झोली में कई पदक डालें।
 लेकिन रियो 2016 में पहली बार ऐसा हुआ जब भारत को पदक महिला वर्ग से मिला। ओलंपिक में साक्षी मलिक कुश्ती पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी। उन्होंने 58 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। 

जीत के बाद साक्षी कहती हैं 
"मैंने आज तक कभी हार नहीं मानी। मुझे पता था कि अगर मैंं 6 मिनट तक रहती तो मैं जीत जाती। अंतिम दौर में मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ देना था और मुझेेे आत्मविश्वास था।"

• सानिया मिर्जा 
सानिया मिर्जा ने हमेशा अपने प्रदर्शन सेेेेे भारत का सिर ऊंचा किया। वे भारत की सर्वश्रेष्ठ महिला टेनिस खिलाड़ी हैं। जनवरी 2020 में मां बनने के बाद, पहली बार टेनिस कोर्ट में वापस लौटी तो जोश और उत्साह से भर गई। सानिया मिर्जा की बेमिसाल उपलब्धियां उनके सफल जीवन में चार चांद लगाती हैंं।  
वे छह बार की ग्रैंड स्लैम चैंपियन रह चुकी हैं। डबल्स में पूर्व वर्ल्ड नंबर वन और ओलंपिक का तीन बार सफर भी तय कर चुकी है।
2016 के रियो ओलंपिक में सेमीफाइनल तक का सफर भी सानिया ने तय किया। सानिया के नाम पर 42 डब्ल्यूटीए युगल खिताब व डब्ल्यूटीए की सिंगल्स रैंकिंग के शीर्ष 30 में जगह बनाने वाली वे एकमात्र महिला भी हैं।

टोक्यो ओलंपिक 2021 में भारत
ओलंपिक खेलों में इस बार भारत के 119 एथलीटों ने हिस्सा लिया। इसमें 67 पुरुष और 52 महिला खिलाड़ी शामिल है। यह ओलंपिक में भारत का अब तक का सबसे बड़ा दल है। बता दें कि 119 खिलाड़ियों के दल में 10 भारतीय खिलाड़ी ऐसे भी हैं जो अपने खेल में दुनिया की टॉप 3 रैंकिंग में आते हैं। भारत ने आठ खेलो, तीरंदाजी, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, हॉकी, जूडो, जिमनास्टिक, तैराकी और वेटलिफ्टिंग में हिस्सा लिया।

 एक गोल्ड समेत कुल 7 पदक जीतकर रचा इतिहास
जैवलिन थ्रो स्टार एथलीट नीरज चोपड़ा ने गोल्ड मेडल जीतकर टोक्यो ओलंपिक को भारत के लिए ऐतिहासिक बना दिया इसमें भारत ने ओलंपिक इतिहास की सबसे ज्यादा मेडल जीतकर रिकॉर्ड बना लिया भारत ने इस बार कुल 7 मेडल जीते जिसमें एक गोल्ड 2 सिल्वर और चार ब्राउन जाए इससे पहले 2012 लंदन ओलंपिक में भारत ने 6 मेडल 2 सिल्वर 4 ब्रोंज जीते थे। 

एक नजर भारत के प्रदर्शन पर

भाला फेंक (जैबलिन थ्रो): 7 अगस्त को ओलंपिक खेलों की भाला फेंक स्पर्धा के फाइनल में नीरज ने अपनेेे दूसरेे प्रयास में 87.58 मीटर भाला फेंका। यह प्रयास दुनिया को स्तब्ध करने वाला था। एथलेटिक्स में पिछले लगभग 121 सालों में भारत का यह पहला ओलंपिक पदक है। नीरज व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी हैं। इससे पहले 2008 बीजिंग ओलंपिक में, अभिनव बिंद्रा ने निशानेबाजी मेंं पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल में व्यक्तिगत स्वर्णण पदक जीता था। बिंद्रा के गोल्ड ने भारत में पड़े लगभग 100 साल के गोल्ड के सूखेे को खत्म किया था।


बैडमिंटन: 2016 रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडलिस्ट शटलर पीवी सिंधु सेेेे इस ओलंपिक में गोल्ड की उम्मीद थी लेकिन इस बार सिंधु को चीन की ही बिंगजियाओ को हराकर मिले, ब्रॉन्ज मेडल सेे ही संतोष करना पड़ा।

वेट लिफ्टिंग: भारत में मेडलों की शुरुआत, मीराबाई चानू के सिल्वर मेडल से हुई। चानू ने 49 किलो भारवर्ग में कुल 202 किलो, 87 किलो स्नैच में और 115 किलो क्लीन एंड जर्क में वजन उठाकर सिल्वर मेडल कोअपने नाम किया।
बॉक्सिंग: मैरी कॉम को मिली हार सेे निराश देश को लवलीना बोर्गोहेन ने कांस्य पदक दिलाया। पहली बार ओलंपिक खेल रही लवलीना ने 69किग्रा भारवर्ग की बॉक्सिंग प्रतियोगिता में मेडल जीता।

कुश्ती: इस बार भारत ने कुश्ती में दो मेडल जीतेे।
कांस्य पदक: पहलवान बजरंग पुनिया ने कजाकिस्तान के दौलत नियाजबेेकोव को 8–0 से हराकर कुश्ती प्रतियोगिता में पुरुषों के 65 किग्रा भारवर्ग में कांस्य पदक जीता। स्वर्ण पदक के प्रबल दावेदार माने जा रहे पुनिया इस बार चूक गए।
रजत पदक: वहीं दूसरी ओर रवी दहिया ने कुश्ती में पुरुषों केे 57 किग्रा भारवर्ग में रजत पदक जीता। इससे पहले लंदन ओलंपिक 2012, कुश्ती में सुशील कुमार ने रजत और योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीता था।

हॉकी: ओलंपिक मेंं भारत का ऐतिहासिक पल वह था जब 41 साल बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता। इससेेेेे पहले भारत ने मॉस्को ओलंपिक 1980 में आखिरी बार गोल्ड मेडल जीता था। भारत को अब तक मिले 10 गोल्ड मेडल में से 8 गोल्ड मेडल सिर्फ हॉकी टीम ने जीतेे हैंं।

खेलों में भारतीय महिलाओं का भविष्य
21वीं सदी में भारत की महिलाओं ने ओलंपिक खेलों में अपने हुनर का परचम लहराया है। 2018 कॉमन वेल्थ गेम्स में  हिमा दास ने हिस्सा लिया था। हिमा ने भले ही कोई मेडल ना जीता हो लेकिन अपनी करतब से लोगों का दिल जरूर जीत लिया था।

2018 के IAPF U–20 चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में हिमा दास ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया। 2019 में एक समय पर आईसीसी क्रिकेट विश्व कप के दौरान 1 महीने में 5 स्वर्ण पदक जीतकर हिमा ने भारतीय क्रिकेट की लोकप्रियता को संकट में डाल दिया था।
 रियो 2016 में दुतीचंद ने 100 मीटर की दौड़ पूरी की थी। यह भारत की तीसरी महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में 100 मीटर इवेंट में क्वालीफाई किया हैै।
हाल ही में आयोजित 2021 टोक्यो ओलंपिक में भारत को अब तक तीन पदक, 1 सिल्वर और 2 कांस्य पदक, मिल चुके है। और महत्वपूर्ण बात ये है कि ये तीनों पदक लाने वाली बेटियां है।
• मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीतकर भारत का खाता खोल दिया है। उन्होंने 49 किलोग्राम में रजत पदक हासिल किया। इस पर भारत के प्रधानमंत्री सहित खेल मंत्री अनुराग ठाकुर व समस्त देशवासियों ने उन्हें बधाई दी है। विश्व कैडेट कुश्ती चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन करते हुए प्रिया मलिक ने रविवार को स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
वहीं विश्व रैंकिंग में 62वे नंबर की मनिका बत्रा तीसरे दौर में पहुंचकर, पदक लाने से चूक गई।
• पीवी सिंधु, एक बार फिर कांस्य पदक के साथ भारत लौटी। इसके साथ ही लगातार दो व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी। 
•तीसरा, कांस्य पदक, बॉक्सिंग में लवलीना बोर्गोहेन ने जीता। लवलीना को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री अमित शाह समेत अन्य कई सितारों ने बधाई दी।
वहीं 6 बार की विश्व चैंपियनशिप एमसी मैरीकॉम (51किग्रा) का अपने दूसरे ओलंपिक मेडल से चूक गईं। 2016 रियो ओलंपिक में मैरी ने कांस्य पदक देश के नाम किया था।
दूसरी ओर दीपिका कुमारी, पूजा रानी, कमल प्रीत कौर जैसी अन्य एथलीट है जो भले ही मेडल ना जीती हों लेकिन ओलंपिक में उनका प्रदर्शन बेहतर रहा है।
इस तरह खेलों में भारतीय महिलाओं का भविष्य सुनहरा है।

ओलंपिक में भारत का ऐतिहासिक क्षण
भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों ने तीन बार चैंपियन और विश्व नंबर दो ऑस्ट्रेलिया, को हराकर पहली बार खेलों के सेमीफाइनल में प्रवेश किया। इससे पहले 1980 में महिला हॉकी टीम ने सेमीफाइनल में प्रवेश किया था।
ड्रैग–फ्लिकर गुरजीत कौर ने 22वें मिनट में भारत के एकमात्र पैनालिटी कॉर्नर को बदल कर बढ़त बना ली जिसने मैच जिताने में महत्वपूर्ण रोल निभाया। 
दूसरी ओर गोलकीपर सविता भी विरोधी टीम के गोल को रोकने में सफल रहीं। ओ
खिलाड़ियों ने इस ऐतिहासिक जीत का श्रेय अपने कोच सोजर्ड मारिन व टीम को दिया।इस जीत पर देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित अन्य दिग्गज कलाकारों ने बधाई दी।
आत्मविश्वास से भरपूर भारतीय महिला हॉकी टीम शानदार प्रदर्शन के बावजूद अपने अगले मैच में अर्जेंटीना के खिलाफ सेमीफाइनल में हार गई।


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