वैज्ञानिक क्या कहते हैं
दुनिया की कोई भी वैक्सीन जैसे पोलियो वैक्सीन,टी.बी वैक्सीन आदि कभी भी 100 फ़ीसदी कारगर नहीं होती। हां! अगर टेस्टिंग रिजल्ट 90 फ़ीसदी या उससे ज्यादा का आता है तो वह वैक्सीन असरदार मानी जाती है।
वैसे तो क्लीनिकल ट्रायल के आए नतीजों में तीनों वैक्सीन ही गंभीर लक्षणों से बचाने तथा मौत को टालने में100% इफेक्टिव हैै। इसलिए दुनिया भर के वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि जो भी वैक्सीन उपलब्ध हो, उसका डोज लगवा लें। लेकिन फिर भी तीनों वैक्सीन के बारे में सभी को जान लेना चाहिए।
Sputnik V वैक्सीन
रूसी वैक्सीन का नाम – स्पूतनिक वी
(Gam–Covid–Vac Lyo)
कंपनी–भारत में डॉक्टर रेड्डी लैब
वैक्सीन टाइप–वायरल वेक्टर
प्रभावी– 92%
दोनों डोज में अंतर– 21 दिन
स्टोर टेंपरेचर– 2–8°C
यह एक रूसी वैक्सीन है,जिसे मास्को के गमलेया इंस्टीट्यूूट ने रिसर्च करकेेे बनााया हैै। इस वैक्सीन को बनाने में दो अलग-अलग प्रकार के वायरस का प्रयोग किया गया हैै। इसमें जीवित कोरोना वायरस के छोटे अंश को सामान्य सर्दी-जुकाम वालेेे वायरस (एडिनोवायरस)के साथ मिलाकर इसकी डोज तैयार की गई, ताकि जब यह मानव शरीर में जाए तो स्ट्रांग इम्यूनिटी पैदा करें।
स्पूतनिक के परिणामों की प्रभावशीलता 91.6% पाई गई है।स्पूतनिक को 2–8°C पर स्टोर तथा ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है। इसकी पहली खुराक व दूसरी खुराक केेेेे बीच का अंतर 21 दिन का है। स्पूतनिक की पहली डोज दूसरी डोज सेेे अलग है।
स्पूतनिक को अब तक अर्जेंटीना,फिलिस्तीन,वेनेजुएला, हंगरी,यूएई और ईरान सहित 60 देशों में स्वीकृत किया गया है। भारत का स्पूतनिक के साथ 75 करोड़ डोज का कॉन्ट्रैक्ट हुआ है,जिसे भारत की डॉ रेड्डी लैब की निगरानी में ग्लैंड फार्मा समेत अन्य पांच कंपनियां बनाएंगी। सभी डोजेस का उत्पादन भारत में ही होगा। यह कंपनियां एक वर्ष के भीतर 600 मिलियन से ज्यादा डोज की उत्पादक क्षमता भी बढ़ाएंगे।
स्पूतनिक की पहली दूसरी डोज से कैसे अलग है
अन्य सामान वैक्सीन के विपरीत स्पूतनिक पहली और दूसरी खुराक के लिए वैक्सीन के दो अलग-अलग संस्करण का उपयोग करता है। वे दोनों कोरोना वायरस के विशिष्ट स्पाइक को लक्षित करते हैं लेकिन अलग-अलग वेक्टर (बेअसर वायरस जो स्पाइक को शरीर तक ले जाता हैै) का उपयोग करते हैं। विचार यह है कि दो अलग-अलग फार्मूूले का उपयोग करने से, एक ही संस्करण का दो बार उपयोग करने से भी अधिक, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा मिलता है और लंबे समय तक चलने वाली सुरक्षा दे सकता है। प्रभावी होने के साथ-साथ यह सुरक्षित भी था और परीक्षण के दौरान पीके से जुड़ी कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं थी।
Covishield
कंपनी – ऑक्सफोर्ड एस्ट्रेजनेका
प्रभावशीलता – 90%
दोनों डोज में अंतर– 12 से 16 हफ्ते
स्टोर टेंपरेचर – 2–8°C
एस्ट्रेजनेका फार्मा कंपनी ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इस टीके का निर्माण किया है। अब इसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया तैयार कर रही है। इस टीके का विकास चिंपांजी में सर्दी पैदा करने वाले सामान्य वायरस ChADOX1,को कम करने में सहायक चीजों का उपयोग किया गया है। इसे कोरोना वायरस जैसा लगने के लिए बनाया गया है। मगर इससे बीमारी नहीं होती। जब वैक्सीन को किसी मरीज में इंजेक्ट किया जाता है तो यह प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित करता है। और इसे किसी भी कोरोना वायरस संक्रमण पर हमला करने के लिए प्रेरित करता है।
कोविशील्ड को भी 2–8°C के तापमान पर सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जा सकता है तथा इसका ट्रांसपोर्टेशन भी आसान है। कोविशील्ड की पहली डोज (एक आधा खुराक) लेने पर प्रभावशीलता 70 फ़ीसदी तथा दूसरी डोज (पूरी खुराक) लेने पर प्रभावशीलता 90 फ़ीसदी पाई गई है। हालांकि अप्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है की पहली और दूसरी खुराक के बीच एक लंबा अंतर होने पर वैक्सीन की समग्र प्रभावशीलता बढ़ जाती है एक उप समूह में वैक्सीन को इस तरह से पहली खुराक के बाद 70 फ़ीसदी प्रभावी पाया गया है। भारत में सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स को कोविशील्ड वैक्सीन ही लगाई गई थी, क्योंकि तब तक कोवैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण का डाटा नहीं आया था। एक वैक्सीन की बॉटल से10 लोगों को टीका लगाया जा सकता हैं।
Covaxin
कंपनी – आईसीएमआर-भारत बायोटेक
वैक्सीन टाइप – इनएक्टिवेटेड
प्रभावशीलता – 81%
दोनों डोज में अंतर– 28 दिन या 4 सप्ताह
स्टोर टेंपरेचर – 2–8°C
यह भारत का पूर्णरूपेण स्वदेशी वैक्सीन है।कोवैक्सीन एक निष्क्रिय टीका है जिसका अर्थ है कि यह मरे हुए कोरोना वायरस से बना है जिससे इसे शरीर में इंजेक्ट किया जाना सुरक्षित है। इस टीके में,भारत की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा पृथक किए गए कोरोना वायरस के एक नमूने का उपयोग किया गया है। कोवैक्सीन का टीका लेने पर प्रतिरक्षा कोशिकाएं मृत वायरस को पहचान लेती है तथा प्रतिरक्षा प्रणाली, महामारी वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगती है।
भारत बायोटेक के 3 मार्च को जारी किए गए फेज 3 ट्रायल के नतीजों में कोवैक्सीन की क्लीनिकल एफीकेसी लगभग 81% होने का दावा किया गया। यह वैक्सीन ट्रायल के दौरान पूरी तरह से सुरक्षित पाई गई और किसी भी वॉलिंटियर में कोई भी सीरियस साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिले। कोवैक्सीन, दो तरह के बूस्टर उपयोग करती है। ऐसे में ये बाकी निष्क्रिय SARS-CoV-2 टीकों के मुकाबले बेहतर साबित हो सकती है। खास बात यह है कि यह वैक्सीन गंभीर लक्षणों को रोकने और मौत को टालने में 100 फ़ीसदी कारगर है।
अमेरिका के शीर्ष महामारी विशेषज्ञ और व्हाइट हाउस के मुख्य चिकित्सा सलाहकार एंथनी फौसी ने यह कहा कि "कोवैक्सीन भारत का घरेलू वैक्सीन है जो घातक वायरस के 617 वेरिएंट्स को बेअसर करनेे मेंं सफल है।"
•प्रधानमंत्री मोदी ने भी 1 मार्च को कोवैक्सीन का पहला तथा 8 अप्रैल को दूसरा डोज लिया था।
तीनों वैक्सीन के साइड इफेक्ट
तीनों वैक्सीन का नेचर इंट्रा मस्कुलर है,यानी हाथ में वैक्सीन लगवाने पर सुई काफी अंदर तक जाती है। जिससे इंजेक्शन की जगह पर दर्द, सूजन, बेहद आम है। तीनों में से किसी भी वैक्सीन को लेने पर हल्का बुखार, नजला, शरीर में दर्द, थकान आदि जैसी शिकायतें देखने को मिल सकती है और नहीं भी। अगर यह लक्षण दिखते भी हैं तो घबराए नहीं। 2 से 3 दिन आराम करने पर ये लक्षण सही हो जाएंगे। वैक्सीन लगने के बाद 2 से 3 दिन आराम करने से इन लक्षणों के होने की संभावनाएं कम हो जाती है। किसी भी प्रकार की दिक्कत होने पर डॉक्टर से परामर्श लें और लक्षणों अनुसार दवा।
कौन सी वैक्सीन लगवानी चाहिए
वैसे तो इन तीनों में सबसे ज्यादा प्रभावी, 92 फ़ीसदी के साथ स्पूतनिक वैक्सीन है, लेकिन भारत में तथा पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के कई नए म्युटेंट स्ट्रेंस है जैसे यूके स्ट्रेन, ब्राजील स्ट्रेन, दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन के साथ ही डबल तथा ट्रिपल म्युटेंट स्ट्रेन भी कई देशों में मिले हैं। ऐसे में यह प्रकाशित परिणामों के साथ साबित हुआ है कि कोवैक्सीन ही इन सभी वेरिएंट्स के खिलाफ कारगर है। बाकी दोनों वैक्सीन कोविशील्ड तथा स्पूतनिक को लेकर अभी ऐसा कोई दावा या स्टडी नहीं की गई जो इन सभी स्ट्रेन्स पर असरदार हो।
ऐसे लोग डॉक्टर की सलाह पर लगवाएं वैक्सीन
✓ ऐसे लोग जिन्हें करोना हो चुका है उन्हें कोरोना से रिकवरी के 3 महीने बाद ही वैक्सीन की डोज लगाईं जाएगी।पहली डोज लेने के बाद संक्रमण होने पर रिकवरी के 3 महीने बाद दूसरी डोज लगेगी।
✓ जिन लोगों को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी या प्लाज्मा थेरेपी दी गई है उन्हें हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के 3 महीने बाद ही वैक्सीन लगवानी चाहिए।
✓ गंभीर बीमार वालों को अस्पताल में भर्ती होने पर, डिस्चार्ज होने के 4 से 8 हफ्ते बाद ही वैक्सीन लगवानी चाहिए।
✓ अब स्तनपान करा रही महिलाएं भी वैक्सीन लगवा सकती है।
✓ जिन लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लेने पर कोई भी परेशानी हुई थी, वे डॉक्टर की सलाह पर ही दूसरी डोज लगवाएं। दूसरी तरफ जिन लोगों में प्लेटलेट्स कम है या जिन्होंने ट्रीटमेंट लिया है उन्हें वैक्सीन लगाने के बाद निगरानी में रखा जा रहा है
✓18 उम्र से कम के युवा वैक्सीन ना लगवाएं।
वैक्सीन के संबंध में ध्यान देने योग्य बातें
ध्यान दें कि आपको एक ही वैक्सीन की दोनों डोज लगें। मतलब कि अगर आपने कोविशील्ड की पहली डोज ली है तो दूसरी डोज भी कोविशील्ड की ही होनी चाहिए।और सुनिश्चित करे की इंजेक्शन में भरी डोज की पूरी मात्रा आपके शरीर में जाए।अगर दोनों डोज अलग-अलग वैक्सीन की हुई तो शरीर पर इसका घातक असर हो सकता है।इसके अलावा कोविड से प्रोटेक्शन भी नहीं मिलेगा। भारत में टीकाकरण अभियान के द्वारा बताई गई चेतावनी में से एक यह भी है कि "लगने वाला पहला और दूसरा टीका एक ही कंपनी का होना चाहिए।"
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